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श्री कल्यणमंदिर स्तोत्र साथ
Karmans, however tight they may become certainly loose within a moment like the serpent-bands of a sandal tree, immediately when a wild peacock arrives at its centre ( 8 )
सर्पवृश्विकविषविनाशक
मुध्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र ! रौद्ररुपद्रवशतैस्त्वयि
वीक्षितेऽपि ।
गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, वीरेरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ||६||
बहु विपदाएँ प्रबल वेग से करें सामना यदि भरपूर प्रभु दर्शन से निमिषमात्र में हो जातीं वे चकनाचूर ।। जैसे गो-पालक' दिखते ही, पशु-कुल को तज देतं चोर । भयाकुलित हो करके भागें, सहसा समझ हुप्रा अब भोर ॥
श्लोकार्थ — हे संकटमोचन । जिस तरह प्रचण्ड सूर्य, पराक्रमी भूपाल तथा बलिष्ठ गो-पालकों ( ग्वालों ) के दिखते ही भय से शीघ्र भागते हुए चोरों के पंजे से पशु-धन छूट जाता है, उसी तरह हे कृपालुदेव ! भापकी वीतराग मुद्रा को देखते हो मानव महा-भयङ्कर संकड़ों संकटों से तत्काल छुटकारा पाते हैं।
तुम निरखत जन दीनदयाल, संकट तें छूटहि तत्काल । ज्यों पशु घेर लेहि निशि चोर, ते तज भागह देखत - भोर ॥
१- गायों का स्वामी ग्वावा ), सेजस्वी सूर्य तथा प्रतापी राजा । २ - प्रातःकाल ।