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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादिसहित श्लोकार्थ-हे कर्मबन्धनविमुक्त ! जिनेश ! जसे जंगली मयूरों के प्राते ही मलयागिरि के मुगन्धित चन्दन के सघन वृक्षों में कोउसकार लिपटे हुए भयङ्कर भुजङ्गों की दृढ़ कुण्डलिया तत्काल दाली पड़ जाती हैं ; वैसे ही ससारी जीवों के मन-मन्दिरों के उच्च सिंहासनों पर आपके विराजमान होने पर--प्रापका 'नाम-मंत्र' स्मरण करने पर उनके ज्ञानावरणादि अष्टकमों के कठोरतम बन्धन क्षणमात्र में अनायास ही ढीले पड़ जाते हैं | तुम प्रावत भविजन मन माहि. कर्मनिबंध शिथिल हो जांहि। ज्यों चन्दनतरु बोलहि मोर, इरहिं भजङ्ग लगे चहुँपोर ।।
८ ऋद्धि-ॐ ह्रौं पर्ह णमो उहगदहारीणं पादाणुसारीण।
__ मंत्र-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथतीर्थङ्कराय हंस: महाहंसः पमहसः शिवहंस: कोपहंस: उरगेशहसः पक्षि महाविषभक्षि हुँ फट् ( स्वाहा ।)
...( भैरवपद्मावतीकल्पे प्र० १० श्लोक २९) विधि-इस मंत्र को प्रतिदिन १०८ बार जप कर सिद्ध करे । पश्चात् सपं उसे भावमी पर प्रयोग करे। प्रर्थात् मंत्र पढ़ते हुए झाड़ा देने से जहर दूर होता है।
ॐ ह्रीं कर्माहिबन्धमोचनाय श्रीजिनाय नमः । He mentions the result of contemplating God.
Oh Lord when Thou art enshrined in the heart by a living being, his firm fetters of
1-सवाकुसारी इनिधारी जिनों को नमस्कार हो ।