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________________ [ २ ] मास्मशक्ति का तेज छिपाये छिपता नहीं; यही कारण है कि उज्जयिनी नगरी में रहते हुये यद्यपि इन्हें अधिक समय नहीं हुमा सथापि ख्यातिका इनके परगों में नये : पौर एक दिन यह पाया कि वे विक्रमादित्य नरेश के राज्यदरबार के ऐतिहासिक नवरानों में से 'क्षपणक' नामक एक उज्ज्वल रन बन बैठ। कैसे ? उसका भी एक रहस्य है .....। पीछे २ प्रजा का विशाल जनसमूह तथा सब से प्रागे राजा विक्रमादित्य एक विभूषित मातङ्ग पर बारूढ होकर चले जा रहे थे और दूसरी ओर से अपने में लीन, राजकीय मातडू से निर्भीक एक निस्पृह साधु । राजा शिवभक्त होकर भी सर्वधर्म समभावी था ही, परीक्षा के हेतु मन ही मन नमस्कार कर लिया । बस क्या था ! आत्मा का बेतार के तार का करट पवित्र प्रात्मा तक पहुंच गया और 'धर्मवृद्धिरस्तु का प्ररशीर्वाद अनायास ही उनके मुख से जोर से निकल पड़ा। राजकीय कार्य से कुमुदचन्द्र जी को चित्तौड़गढ़ जाना पड़ा, मार्ग में धो पाश्वनाथ जी का एक जैन मन्दिर देख कर ज्योंही वे दर्शनार्थ घुसे कि एक स्तम्भ पर उनकी दृष्टि पड़ी। स्तम्भ एक अोर से खुलता भी था । इन्होंने उसे खोलने का उद्योग किया किन्तु सफलता में विलम्ब लगा। निदान उसी पर लिखित गुप्त संकेतानुसार उन्होंने कुछ प्रौषधियों के सहारे उसे खोल लिया तथा उसमें रखे हुए अटूट चमत्कारी शास्त्र देखे । एक पृष्ठ पढ़ने के पश्चात् ज्योंही वे दुसरा पृष्ठ पढ़ने लगे
SR No.090236
Book TitleKalyanmandir Stotra
Original Sutra AuthorKumudchandra Acharya
AuthorKamalkumar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size2 MB
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