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श्रील्याणमन्दिरस्तोत्र मा
मोऽस्याभवत्यनिभा भवातु:08
प्रेसजः प्रति भवन्तमयीरितो या
ध्वस्तीर्थ केशाविकृताकृति मर्यमुण्ड
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श्लोक ३३ ऋद्धि-- हो आह रणमो जवित्ताय ( ? ) खिताए । मन्त्र-ॐ ह्रीं श्री वृषमादितीर्थङ्करेभ्यो नमः स्वाहा ।
अथवा ऋ असं प्रमु पसु चंपुशीने वावि भधशाकु अममुनने पाम ।
गुण-अतिवृष्टि, अनावृष्टि, उत्कापात एवं टिड दिन को रोककर संभावित दुर्भिक्ष से जनता की रक्षा होती है ।
फल – सिरपुर (थीपुर) नगर के पुखराज कृषक ने इस स्तोत्र के ३३ वें काध्यसहित उक्त मन्त्र को साधना द्वारा उसके प्रभाव से सम्भावित दुर्भिक्ष को रोका था।