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दैत्येन मुक्तमा दुस्तरवारि बजे,
यन्त्र मन्त्र ऋद्धि पूजन आदि सहित
तेनैव तस्य जिन। दुस्तरवारिकृत्यम् ॥ ३२ ॐ नमो:
नमो भगवते
दिस्वाहा।
स्थर सही
Aazeen
想起
你做我
म
-
དུབ་ཟེལ་ལ
यद्र्जर्जितधनासद - अभीमं
श्लोक ३२
रामो मटुमट्ट ( द ? ) शामए ।
[ १६३
ऋद्धि-ॐ
मन्त्र - ॐ नमो भगवते मम शत्रुन् बंधय बंधय ताब्य ताडय, उन्मूलय उन्मूलय, जिद बिंद, भिद सिंह स्वाहा ।
गुण- दुष्ट पुरुष का चल निर्बल होता है, शत्रु को सांपातिक प्रस्त्रादिविद्या का जोर नष्ट होता है तथा अपनी दुष्टता को छोड़ देता है ।
फल - राजग्रही नगरी के विश्व-विख्यात शिव मन्दिर में बिराजमान सत्यशील मुनि ने इस स्तोत्र का पाठ करते हुए उक्त मन्त्र के प्रभाव से मन्दिर की अधिष्ठात्री देवी द्वारा कृत उपसर्गों पर विजय प्राप्स को बो तथा उसकी दुष्टता का दलन किया था।