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श्री कल्याणमंदिर स्तोत्र सार्थ
रूप प्ररुपति कि किन धर्मरश्मे:१॥३॥
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शेऽपि कौशिकशिशुर्यदि या दिवाइयो,
सामान्यतोऽपि लय वर्णयितुं स्वखप--
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श्लोक ३ ऋद्धि-ॐ ह्रीं प्रहं णमो समुद्दे ( ६ ? ) भयं { ?)
साम्यति (समन ?) बुद्धीणं । मंत्र-ॐ भगवत्यै पदहनिवासिन्य नम: स्वाहा।
गुण- इसके प्रभाव तथा श्री पाश्वनाथ स्वामी के प्रसाद से पानी का भय नहीं रहता और न दरयाव में डगमैंगाता हुआ जहाज डूबता है।
___ फल-पाटलिपुत्र (पटना) नगर के विक्रमसिंह राजा में तृतीय इलोकसाहित ऋद्धि-मंत्र की भावसहित भाराधना से रनों से लदे जहाज की समुद्र के तूफान से रक्षा की थी।