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यत्र मंत्र ऋमि पूजन प्रादि सहित
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म्भोयेत का मलय ने राम ॥
कल्पान्तवान्तपरमः प्रकटोऽपि यम्मा
माहक्षयादनुभवपि नाथ! मयों ,
श्लोक-४ ऋद्धि-* ह्रीं अर्ह णमो धम्मराए जयतिए। मत्र-ॐ नमो भगवते ह्रीं श्रीं क्लीं मह नम: स्वाहा ।
गुण-इस प्रकार मंत्र के प्रभाव सपा श्री पार्श्वनाथ स्वामी के प्रसाद से असमय में गर्भपात वा अकालमरण नहीं होता और सन्तान चिरजीठी होती है।
___ फल - अयोध्या के राजा यश कीति की राजमहिषी यशस्वती देवी ने चतुर्व काव्य सहित ऋद्धि-मंत्र का माराधम कर अपने गर्भ की रक्षा की और पशस्वी राजकुमार को प्रसप किया था।