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अम्बावरिष जाति के असुरकुमार देव पूर्वभव की याद दिला कर उन को लड़ाते हैं । आज भी संसार में अनेक रौद्र ध्यानी जीव ऐसे पाए जाते हैं जो दो बकरों को, मुर्गों को या तीतर आदि को लड़ा कर आनन्दानुभूति करते हैं, उसी तरह वे देष दो नारकियों के में विद्वेष की प्रचड साह भर का युद्ध करवाते हैं व उन के युद्ध को देख कर आनन्द मनाते हैं।
शारीरिक दुःख • इन नारकी जीवों में वैक्रियक शरीर पाया जाता है। केवल एक अन्तर्मुहूर्त में अवयव पूर्ण हो जाते हैं। अन्तर्मुहूर्त यानि कितना काल ? दो समय से अधिक व अड़तालीस मिनट में एक समय कम इतने काल को अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। इतने अल्प समय में उस के अवयव पूर्ण हो जाते हैं।
कैद में फँसी है आत्मा
नारकी जीवों के उपपादस्थान (जन्म-स्थान) जमीन से ऊपर होते हैं। उन के आकार कुम्भी मुद्गर, मृदंग, धोकनी आदि के समान भयानक होते हैं। जन्म-स्थानों का भीतरी भाग करोंत की धार के समान तीव्र वज्रमय है। नारको जीव उत्पन्न होने पर नीचे 36 आयुधों के बीच गिरता है व उछलता है। उस की वह उछाल गेंद की तरह होती है । पुन: पुन: उछल कर व गिर कर वह अनेकों कष्ट सहता है। पहले नरक का नारकी सात योजन, छ: हजार पाँच सौ धनुष प्रमाण ऊपर उछलता है। दूसरे नरक तथा आगे-आगे उछलने का यह प्रमाण द्विगुणित - द्विगुणित हो जाता है।
प्राचीन आचार्यों ने लिखा है कि अपने किये हुए तीव्र पापकर्म का कष्ट भोगने के लिए ही यह जीव नरक जाता है। अतएव वहाँ होने वाले दुःखों की हम कल्पना ही नहीं कर सकते ।
मनुष्यावस्था में जिस ने शराब व्यसन पाल रखा था, वहाँ जाने पर उसे गर्म लौह रस पिलाया जाता है, पूर्वभव में जो पर स्त्री सेवन या वेश्या सेवन करता था, वहाँ उसे तस लौह पुतलियों के साथ चिपका दिया जाता है।
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तीनों लोकों में जितना भी अनाज उत्पन्न होता है, एक साथ सब खा जाएं तो भूख शमित नहीं होगी, उस को उतनी तीव्र भूख वहाँ लगती है किन्तु एक कण भी नहीं मिलता है। कभी कदाचित् वह दुर्गंधयुक्त जहरीली मिट्टी खा लेता है। समुद्र का पानी भी उसकी तृष्णा को शान्त नहीं कर पाएगा, परन्तु एक भी बून्द नहीं मिलती उसे ।
मानसिक दुःख
नरक में अशुभ लेश्याएँ पाई जाती हैं। राजवार्तिककार
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