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________________ काल-द्वार विवेचन- १. रत्नप्रभा की एक सागरोपम, २. शर्कराप्रभा की तीन सागरोपम, ३, बालुकाप्रभा की सात सागरोपम, ४. पंकप्रभा की दस सागरोपम, ५. धूमप्रभा की सतरह सागरोपम, ६. तमप्रभा की बाईस सागरोपम तथा ७. तमस्तपप्रभा की तैतीस सागरोपम उत्कृष्ट भवायु स्थिति जानना चाहिए। यह काल एक भव की अपेक्षा से है। मारकी तथा देवों की जघन्यायु पहमादि जमुक्कोसंबीयादिसु सा अहणिया हो । घम्माए भवणवंतर घाससहस्सा दस महण्णा ।। २०३।। गाथार्थ-प्रथम आदि नरक को जो उत्कृष्ट आस्थिति है वहीं दूसरी आदि नरकों की जघन्य आयुस्थिति होती है। घम्मा नामक प्रथम नरक और भवनपत्ति तथा व्यन्तर देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष की है। विवेचन- प्रथम नमक की उल्काप आरा ही इसी तरह की जयन्य आयु है। अर्थात् प्रथम नरक की उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम है यही दूसरी नरक की जघन्य आयु है। दूसरे नरक की उत्कृष्ट भवायु तीन सागरोपम की है, यही तीसरे नरक की जघन्य आयु है। इसी क्रम से चौथे नरक की सात, पाँचवें नरक की दस, छठे नरक की सतरह तथा सातवे नरक की बाईस सागरोपम जघन्य आयु है। प्रथम नरक के नारकों और भवनपति तथा व्यन्तर देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष की है। देवों की उत्कृष्ट आयु असुरेसु सागरमहियं सई पाल्लं दुवे य देसूणा। नागाईणुक्कोसा पल्लो पुण वंतरसुराणं ।। २०४।। गावार्थ-दक्षिण दिशा के असुरकुमारों की उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम तथा उत्तर दिशा के असुरकुमारों की एक सागरोपम से कुछ अधिक होती है। दक्षिण दिशा के नागकुमारों की डेढ़ पल्योपम तथा उत्तर दिशा के नागकुमारों की दो पल्योपम से कुछ कम उत्कृष्ट आयु है। व्यन्तरदेवों की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम होती है। विवेचन- भवनवासी देवी के १० प्रकार हैं- १. असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. सुवर्णकुमार, ४. विद्युत्कुमार, ५, अग्निकुमार, ६. द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. दिक्कुमार, ९. वायुकुमार एवं १०. स्तनित कुमार- ये
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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