SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ जीवसमास भी दो प्रकार के हैं मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में रहने वाले तथा मेरुपर्वत की उत्तर दिशा में रहने वाले दक्षिण दिशा की उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम हैं तथा दक्षिण दिशा के इन्द्र बलीन्द्र की उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम से कुछ अधिक है। देवों के इन्द्र चमरेन्द्र असुरकुमारों के देवों के अब चमरेन्द्र और बलीन्द्र के अतिरिक्त शेष नागकुमार आदि नवनिकाय के देवों की अर्थात् उनके अधिपति इन्द्र की आयु बताते हैं । दक्षिण दिशा के नागकुमार आदि नवनिकायों के अधिपति धरण प्रमुख नौ इन्द्रों की उत्कृष्ट आयु डेढ़ पल्योपम की है तथा उत्तर दिशा के नागकुमार आदि नवनिकायों के अधिपति भूतानंद आदि नौ इन्द्रों की आयु कुछ कम दो पल्योपम हैं। चमरेन्द्र की देवी की उत्कृष्ट आयु साढ़े तीन पल्योपम तथा बलीन्द्र की देवी की उत्कृष्ट आयु साढ़े चार पल्योपम है । उत्तरदिशावर्ती नागकुमारों की देवियों की उत्कृष्ट आयु कुछ कम एक पल्योपम तथा दक्षिणदिशावत नागकुमारों की देवियों तथा व्यन्तर देवियों की उत्कृष्ट आयु आधा पल्योपम हैं। पिशाच, भूत, यक्ष आदि आठ प्रकार के व्यन्तर देव एक पल्योपम की आयु वाले होते हैं। इन सभी की जघन्य आयु दस हजार वर्ष की है (बृहद्संग्रहणी - गाथा ५ ) | ― ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवताओं की जघन्य तथा उत्कृष्ट आयु पल्लठ्ठ भाग पल्लं च साहियं जोइसे जहण्णियरं । हेडिल्लुक्कोसटिई सक्काणं जहण्णा सा ।। २०५ ।। गाथार्थ – ज्योतिष्क देवों की जघन्य आयु पल्योपम का आठवां भाग है तथा उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम से कुछ अधिक हैं। सौधर्म आदि देवलोकों में नीचे के कल्प के देवों की जो उत्कृष्ट आयु है वही ऊपर के देवों की जघन्य आयु होती है। विवेचन – ज्योतिष्क देवों में सभी चन्द्रों, सूर्यो एवं नक्षत्रों के देवी की जयन्य आयु पल्योपम का चतुर्थांश तथा सभी तारागणों की जघन्य आयु पल्योपम का आठवाँ भाग मानी गई है। चन्द्र की आयु १ पल्य एवं १ लाख वर्ष, सूर्य की आयु १ पल्य और १ हजार वर्ष, ग्रह की आयु १ पल्य और नक्षत्र की आयु आधा पल्य तथा तारागणों की एक पल्य का चतुर्थांश भांग उत्कृष्ट आयु होती है। चन्द्रों, सूर्यो, महों तथा नक्षत्रों की देवयों की जघन्य आयु पल्य का चौथा भाग होती हैं तथा तारागणों की देवियों की जघन्य आयु पल्य का आठवाँ भाग
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy