SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षेत्र द्वार १४५ विवेचन -- भुजाभ्यां परिसर्पन्ति इति भुजपरिसर्पाः अर्थात् जो भुजाओं से चलते हैं वे भुजपरिसर्प हैं। यथा- नेवला, गिरगिट, गिलहरी, छिपकली आदि । जलचल, स्थलधर और खेचर जलध्वलनगरऽ प्रजत्ता खतथलसमुच्छिमा य पज्जत्ता । खहगब्मया उ उभये उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं ।। १७४।। गाथार्थ - गर्भज अपर्याप्त जलचर- स्थलचर सम्मूर्च्छिम पर्याप्त खेचर एवं स्थलचर, गर्भज पर्याप्त और अपर्याप्त खेचर इन सब का उत्कृष्ट देहमान धनुष पृथक्त्व हैं। विवेचन – गर्भज अपर्याप्त जलचर का उत्कृष्ट देहमान धनुष पृथक्त्व है। गर्भज अपर्याप्त स्थलचर अर्थात् चतुष्पद, भुजपरिसर्प तथा उरपरिसर्प का देहमान भी धनुष पृथकृत्व है। सम्मूर्च्छिम पर्याप्त खेचर, चतुष्पद स्थलचर का उत्कृष्ट देहमान भी धनुष पृथक्त्व है। खेचर गर्भज पर्याप्तापर्याप्त का भी उत्कृष्ट देहमान धनुष पृथकृत्य है । ( का धनु पृथकृत्य रिशानी है)। अन्य से तो सभी का देहमान अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण हैं। तिर्यन पञ्चेन्द्रिय क्रम नाम १. 9. २. ३. ४. ५. 6. ६० १. सामान्य पञ्चेन्द्रिय जलचर सामान्य जलचर सम्मूर्च्छिम जलचर अपर्याप्त जलचर पर्याप्त जलचर सामान्य गर्भज जलचर अपर्याप्त गर्भज जलचर पर्याप्त गर्भज जलचर स्थलचर (चतुष्पद) सामान्य चतुष्पद उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन प्रमाण एक हजार योजन एक हजार योजन अंगुल का असंख्यातवाँ भाग एक हजार योजन एक हजार योजन अंगुल के असंख्यातवें भाग एक हजार योजन खः गव्यूति जघन्य अवगाहना
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy