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________________ जीवसमास प्रत्येक वनस्पतिकाय का हजार योजन का विशाल शरीर गहरे पद्मद्रह नामक जलाशय का कमलनाल की अपेक्षा से माना गया है। सूक्ष्म वनस्पति का देहमान तो अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण जानना चाहिये। सम्भूमि पछेन्द्रिय जल-बल-खह-सम्मुच्छिम तिरिप अपज्जत्तया विहत्थीयो। जलसंमुब्धिमपज्जत्तयाण अह जोयणसहस्सं ॥१७१।। गाथार्थ-जलचर, स्थलचर तथा खेचर पञ्चेन्द्रिय सम्मूर्छिम अपर्याप्त जीवों का देहमान उत्कृष्ट से विस्तति परिमाण है। सम्मूर्छिम पर्याप्त जलचर का उत्कृष्ट देहमान एक हजार योजन का है। विवेचन- सम्मूर्छिम अपर्याप्त जलचर, थलचर, खेचर, भुजपरिसर्प तथा उपपरिसर्प का अधिकतम देहमान एक विस्तति परिमाण होता है। जघन्य अपेक्षा से तो यह अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण वाला होता है। पर्याप्त सम्मूर्छिम जलचर की उत्कृष्ट अवगाहना (देहमान) एक हजार योजन होती है। ये अवगाहना स्वयंभूरमण समुद्र में उत्पन्न हुए मत्स्यादि की अपेक्षा से समझना चाहिये। उपरिसर्प उरपरिसप्पा जोयण सहस्सिया गम्पया उ उस्कोसं । संमुहिम पज्जत्तम तेसिं धिय जोयणपुश्रुतं ।।१७२।। गाभार्थ-गर्भज पर्याप्त उरपरिसर्प उत्कृष्ट से एक हजार योजन देहमान वाले होते हैं। सम्मूर्छिम पर्याप्त उरपरिसर्प उत्कृष्ट से योजन पृथक्त्व अर्थात् १ योजन से ९ योजन देहमान वाले होते हैं। विवेचन-स्थलचर में उरपरिसर्प (छाती से चलने वाले) सादि न्यूनतम अंगुली के असंख्यातवें भाग देहमान वाले तथा अधिकतम मनुष्यलोक से बाहर पैदा होने वाले गर्भज पर्याप्त उरपरिसर्प एक हजार योजन देहमान वाले होते हैं तथा सम्मच्छिम उरपरिसर्प योजन पृथकत्व देहमान वाले होते हैं। भुजपरिसर्प भुपपरिसप्या गाउयपुसिणो गन्मया व उक्कोस । संमुच्छिम पज्जतय सेसिं विष घणुपहत्तं च ।। १७३।। गाथार्थ- गर्भज पर्याप्त भुजपरिसर्प का उत्कृष्ट देहमान गाउ पृथक्त्व (१ कोस से ९ कोस तक) है तथा संमूर्छिम पर्याप्त मुजपरिसर्प का उत्कृष्ट देहमान धनुष पृथक्त्व (१ धनुष से ९ धनुष) परिमाण है।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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