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________________ * जिनसहस्रनाम टीका- ६२ ** सर्वगतत्वाद्वा = पृथ्वी - वसुधा भूमि है मूर्ति शरीर जिनका ऐसे जिनेश्वर सर्व उपद्रव सहन करते थे इसलिए उनका पृथ्वीमूर्ति नाम प्रसिद्ध हुआ है । सर्वत्र पृथ्वी जैसी व्याप्त हुई है वैसा आपका सहन करने का स्वभावगुण प्रसिद्ध हुआ है अर्थात् पृथ्वी के समान सहनशील होने से पृथिवीमूर्ति हैं। शांतिभाक् = शांतिं भजते इति शांतिभाक - आपने शांति का अवशम् किया है अतः शांतिभाक् यह आपका नाम प्रसिद्ध हुआ है अर्थात् शांति को भजते हैं, धारण करते हैं अतः शांतिभाक् हैं। सलिलात्मकः = सलिलं आत्मा यस्य स सलिलात्मा सलिलात्मक: मृदुत्वात् स्वच्छत्त्वात् वा मलापगमत्वाद्वा तृष्णाभंजनत्वात् = जलस्वरूप यह आपका नाम मृदुपना, स्वच्छपना, मल दूर करना, तृष्णा विनाश करना इत्यादि कार्यों से प्रसिद्ध हुआ है। आपकी भक्ति करने से भक्त में मार्दव गुण उत्पन्न होता है, भक्त का कर्ममल दूर होता है, उसकी तृष्णा, आशा, लोभ ये दोष दूर होते हैं । अतः सलिल (जल) के समान शीतलतादि गुणों के धारक होने से आप सलिलात्मक हैं। वायुमूर्त्तिः = वायुः समीरणो मूर्त्तिर्यस्य स वायुमूर्त्तिः जगत्प्राणरूपत्वात् अप्रतिहतगतित्वादवा - हवा को वायु कहते हैं, जिनेश्वर वायुस्वरूपी है, इसका अभिप्राय यह है- वे जगत् के प्राणस्वरूप हैं। जिनेश्वर की आराधना करने से कर्म हमारी मुक्ति के प्रति होने वाली गति को नहीं रोकते हैं। वा वायु के समान अन्य पदार्थों के संसर्ग से रहित होने से आपको वायुमूर्ति कहते हैं । असंगात्मा - असंग: अपरिग्रहः आत्मा स्वरूपं यस्य स असंगात्मा अपरिग्रहीत्यर्थः = परिग्रह रहित होना, ऐसे गुणों को आप प्राप्त हुए हैं। आप परिग्रह रहित हुए हैं अर्थात् आपकी आत्मा परिग्रह रहित है, अत: आप असंगात्मा हैं । वह्निमूर्त्तिः = वह्नेरग्नेर्मूर्त्तिराकारो यस्य स वह्निमूर्त्तिः जिनेश्वर अग्निस्वरूप हैं, कर्मरूपी लकड़ियों को आपने जला दिया है। अतः कर्मरूपी ईन्धन को भस्म करने के कारण आप वह्निमूर्ति हैं । -
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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