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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ६३ * अधर्मधक् = अधर्म हिंसादिलक्षणं पापं स्वस्य परेषां च दहति भस्मीकरोतीति स अधर्मधक् = हिंसादिक लक्षण जिसके हैं ऐसे अधर्म को आपने जलाकर खाक बनाया है अतः आप अधर्मधक् हैं। सुयज्वा यजमानात्मा सुत्वा सूत्रामपूजितः । ऋत्विग्यज्ञपतिर्यज्यो यज्ञाङ्गममृतं हविः ॥६॥ अर्थ : सुयज्वा, यजमानात्मा, सुत्वा, सूत्रामपूजित, ऋत्विग्, यज्ञपति, यज्य, यज्ञानम्, अमृतम्. हवि ये जिनेश्वर के नाम हैं। ___टीका = सुयज्वा = सु इष्टवान् सुयज्वाऽनित्सुयजो। जिनेश्वर ने पूर्वभव में अतिशय भक्तियुक्त अंत:करण से पूजा की थी। अथवा कर्मरूप सामग्री का अच्छी तरह होम किया था अतः आप सुयज्वा हैं। यजमानात्मा = यजते यजमानः यजमानः आत्मा स्वरूप यस्य स यजमानात्मा दानाधिरूप इत्यर्थः = अपने आत्मा का आपने आराधन किया, पूजन किया इसलिए आप यजमानात्मा हैं अर्थात् आत्मस्वरूप की आराधना करने के कारण आप यजमानात्मा हैं। सुत्वा = षुञ् अभिषवे 'धात्वादेः षः सः' सुनोति सौधर्मेन्द्राद्यज्ञस्नानं प्राप्नोतीति सुत्वा, सूत्रो यज्ञसंयोगेशंतृडन् स्वादेर्नुविकरण: तो विकारो विकरणस्य, उकारस्य वत्वं सुत्त्वन् जातं = 'षुञ्' धातु अभिषेक वा स्नान अर्थ में है। इसमें षुञ् के षु - के स्थान में 'सु' आदेश होता है अतः जो सौधर्मादि इन्द्रों के द्वारा 'यज्ञ' स्थान प्राप्त हुए हैं अतः सुत्वा हैं। इसमें यज्ञ और संयोग में शंतन् प्रत्यय करके सुत्कुन् शब्द की उत्पत्ति हुई तथा व्याकरण से 'उ' का व होता है अत: 'सुत्वन्' तथा नकार का लोप कर आदि स्वर की वृद्धि से अत्वा शब्द बना। अत: इन्द्रों के द्वारा मेरु पर स्नान करने से वा आत्मानन्द सिंधु में स्नान करने से सुत्वा हैं। सूत्रामपूजितः = सूत्रामा शचीपतिः तेन सूत्राम्णा पूजितः सूत्रामपूजितः - शचीपति इन्द्र से आप पूजे गये अतः आप सूत्रामपूजित हैं। ऋत्विक् = यजदेव पूजा संगति करणदानेषु यज ऋतु पूर्व: ऋतौ
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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