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________________ जिसमा ममीला .. ६१ * योगवित् = योगमष्टांगलक्षणं वेत्तीति योगवित् = धारणा, प्राणायामादिक आठ भेद जिसके हैं ऐसे ध्यान के स्वरूप को जानने वाले जिनदेव को योगविद् कहते हैं। योग (ध्यान) के धारणा, ध्यान, प्राणायाम, आसन, प्रत्याहार आदि अष्ट अंग को जानते हैं। वा योग (ध्यान) को जानते हैं अतः योगवित् हैं। विद्वान् = वेत्तीति जानातीति विद्वान् - जो आत्मादिक पदार्थों के स्वरूप को जानते हैं, ऐसे जिनेश्वर को विद्वान् यह नाम देते हैं। वा सर्व पदार्थों के ज्ञाता होने से विद्वान् कहे जाते हैं। विधाता = विदधाति व्यवहारेण नियुङ्क्ते जनमित्येवंशीलो विधाता; व्यवहार नय के द्वारा जिनदेव लोगों को अधर्म से हटाकर धर्म में लगाते हैं। अतः वे विधाता हैं। विशिष्ट मोक्ष मार्ग का विधान करने वाले होने से वा धर्म रूप सृष्टि के कर्ता होने से आप विधाता हैं। सुविधिः = शोभनो निरतिचारो विधिः चारित्रं यस्य स सुविधिः - जो निरतिचार चारित्र से शोभित होते हैं, ऐसे प्रभु सुविधि हैं। वा आपका कार्य उत्तम होने से आप सुविधि हैं। ___ सुधीः = सुष्टु ध्यायतीति सुधीः शुक्ल ध्यान के चिन्तन से कर्मविनाश करने वाले प्रभु को सुधी कहते हैं। वा शोभनीय ‘धी' केवलज्ञान रूप बुद्धि जिनके है वे सुधी कहलाते हैं। क्षांतिभाक् पृथिवीमूर्तिः शांतिभाक् सलिलात्मकः। वायुमूर्तिरसङ्गात्मा वह्निमूर्तिरधर्मधक् ॥५॥ अर्थ : क्षान्तिभाक्, पृथिवीमूर्ति, शान्तिभाक्, सलिलात्मक, वायुमूर्ति, असङ्गात्मा, वहिमूर्ति, अधर्मध ये आठों नाम जिनेश्वर के हैं। टीका = क्षांतिभाक् = क्षांतिवान् वा क्षांतिः तितिक्षा सा विद्यते यस्य स शांतिवान् क्षमाशीलः = क्षान्तिंभाक् क्षमा धारण करना यह क्षमाभाक् नाम क्षमाशील जिनेश्वर का है । क्षांतिवान् वा क्षांति-तितिक्षा जिसके है वह शांतिभाक् है अर्थात् क्षमा को धारण करने वाले होने से आप शांतिभाक् कहलाते हैं। पृथिवीमूर्तिः = पृथिवी वसुधा मूर्तिर्यस्य स पृथिवीमूर्तिः सर्वसहत्वात्
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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