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________________ * जिनसहस्रनाम टीका २३ सिद्धसाध्य कहे जाते हैं । जगद्धितः =जगतां हितः, जगद्भ्यो वा हितः पथ्यः स जगद्धितः - जगत् के लिए हित करना जिनके मन में है वे जगद्धित कहलाते हैं । सहिष्णुरच्युतोऽनन्तः प्रभविष्णुर्भवोद्भवः । प्रभूष्णुरजरोऽयज्यो भ्राजिष्णुर्धीश्वरोऽव्ययः ॥ ११ ॥ | अर्थ : सहिष्णु, अच्युत, अनन्त, प्रभविष्णु, भवोद्भव, प्रभूष्णु, अजर, अयज्यः, भ्राजिष्णु, धीश्वर, अव्यय ऐसे ग्यारह नाम जिनेश्वर के हैं टीका सहिष्णुः सहमर्षणे सहते इत्येवंशीलः सहिष्णुः भ्राज्यलंकुभूसहि रुचिवृत्ति वृधिचरि प्रजनापत्रपेनामिष्णुचुक्षमीत्यर्थः = - सह धातु सहना अर्थ में आती है अतः जिसमें सहन करने की शक्ति है, वह सहिष्णु कहलाता है। = अच्युतः = न च्यवते स्म स्वरूपादित्यच्युतः परमात्मनिष्ठ इत्यर्थः - प्रभु अपने स्वरूप से कभी च्युत नहीं होते हैं, इसलिए वे अच्युत हैं, अपने उत्कृष्ट स्वरूप में स्थिर हैं। अनन्तः = नास्त्यंतो विनाशो यस्येति स अनन्तः = प्रभु के स्वरूप का अन्त-नाश कभी नहीं होता है अतः वे अनन्त हैं। द्रव्य प्रभविष्णुः = प्रभवति अनंतशक्तित्वात् समर्थो भवतीत्येवंशीलः प्रभविष्णुः = प्रभु = प्रभु समर्थ हैं क्योंकि वे अनन्तशक्ति सम्पन्न हैं इसलिए प्रभविष्णु हैं। भवोद्भवः = भवात् पंचधासंसारात् उद्गतो विनष्टो भवो जन्म यस्येति स भवोद्भवः । के ते पंचप्रकार संसारा: संसार:, क्षेत्रसंसार:, कालसंसार:, भवसंसार:, भावसंसारः । तेषां लक्षणं द्रव्यसंग्रहटीकायां ब्रह्मदेवरचितायां ज्ञातव्यं । अथवा भवे संसारे उत्कृष्टो भवो जन्म यस्येति स भवोद्भवः = प्रभु ने पंचप्रकार के संसारों का विनाश किया है अतः वे विनष्ट संसार हो गये हैं, अथवा भव में संसार में प्रभु का जन्म सर्वोत्कृष्ट है, सर्व लोक पूजित हैं इसलिए भवोद्भव हैं, वे पाँच प्रकार के संसार कौन से हैं ? द्रव्य संसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भवसंसार, भावसंसार, इनका लक्षण द्रव्यसंग्रह टीका में ब्रह्मदेव स्वामी ने लिखा है वहाँ से जानना चाहिए । - -
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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