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* १६ फागुन मास में पूज्य इंदुमती जी के अभिनंदन ग्रंथ विमोचन पर सप्तम प्रतिमा के व्रत धारण किये। पूज्य इंदुमती जी की भावना के अनुरूप 'मध्यलोक शोध संस्थान' की रचना तीर्थराज सम्मेद वाखर में हुई। मध्यलोक' के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रमिला जी ने अपने तन-मन की सुध खोकर भी उसे ऐतिहासिक रूप देने का कुशल निर्देशन दिया । आज भी उस आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा होती है।
पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमती जी ने ससंघ बुंदेलखंड की यात्रा करते हुए राजस्थान की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में प्रमिला जी के गृहनगर जबलपुर में संघ का पदार्पण हुआ। जननी माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमती जी ने उन्हें आर्थिका दीक्षा देकर पूज्य निश्चलमती नाम दिया तथा उनकी संलेखना पूर्वक समाधि हुई। इस घड़ी में भी प्रमिला जी का मन विचलित नहीं हुआ और संघ ने बुंदेलखंड के तीर्थों की वंदना करते हुए राजस्थान में प्रवेश किया। अचानक वातावरण के परिवर्तन ने प्रमिलाजी के स्वास्थ्य को बाधित किया पर उत्साह में कमी न आई। श्रीमहावीरजी, नागौर, जयपुर, सीकर, उदयपुर, पारसोला के सफल चातुर्मास में आचार्यों का समागम मिला। आचार्य वर्धमानसागरजी के संघ के साथ चातुर्मास करने का सौभाग्य मिला। खूब धर्म प्रभावना हुई। परम विदुषी पूज्य आर्यिका विशुद्धमती जी की समाधि का सान्निध्य मिला। पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमती जी और प्रमिला जी मानों एक दूसरे के पूरक बन गये।
अपने गुरु के प्रति इस प्रकार का समर्पण भाव बिरला ही देखने को मिलता है। संघ की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। निरंतर गिरते स्वास्थ्य ने कार्यों की गति को सीमा तो दी पर उत्साह, लगन में कोई कमी न आई। आज पूरे देश में डॉ. प्रमिला जी का नाम उच्च कोटि के विद्वानों की श्रेणी में आता है। वर्तमान में जैनगजट के सह-संपादन का भार भी वहन किए है।
ऐसी विलक्षण, प्रतिभा की धनी, गुरु के प्रति पूर्णतः समर्पित, आगमानुसार चर्या की साधिका, मोक्षमार्ग की ओर उन्मुख प्रखर विदुषी डॉ. प्रमिला जी के दीर्घ जीवन की कामना करते हुए शत-शत वंदन करता हूँ।
डॉ. सिंघई प्रभात जैन
जबलपुर