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________________ *१५ के साथ जाने की बात कही। पहले तो मां ने समझाया, प्रमिला के मन को टटोला, उस मार्ग में होने वाली कठिनाइयों से अवगत कराया, पर प्रमिला जिद्दी तो थी ही, मानती कैसे । बोली, अच्छा एक बार माताजी के दर्शन करने चलो। चैत्र कृष्णा पंचमी संवत् २०२८ को पनागर दर्शन करने पहुँची। पूज्य आर्यिकाजी के आशीनों का प्रभाव मन के कोने तक पहुंच गया, वापस लौटने का नाम नहीं। प्रमिला का ऐसा दृढ़ निश्चय देख परिवार को हार माननी पड़ी और अल्पवयस प्रमिला चल पड़ी उस महान् मार्ग पर जो वास्तव में जीवन का लक्ष्य होता है। पूज्य इंदुमतीजी का दृढ़ अनुशासन, पूज्य सुपार्श्वमतीजी का अथाह ज्ञान, वात्सल्य, पूज्य विद्यामतीजी, पूग्य सुप्रभामतीजी की जिनवाणी के प्रति श्रद्धा, निष्ठा, कार्यकुशलता में प्रमिला के पाषाण जीवन को एक आकार मिलने लगा। चैत्र शुक्ला प्रतिपदा २०२९ को अशुद्ध जल का त्याग कर संयम मार्ग की ओर कदम बढ़ाया। स्वयं की लगन, कार्यशीलता, स्नेहिल स्वभाव, प्रसन्नचित्त हृदय ने गुरुओं की शिक्षाओं, उपदेशों, अनुशासन, अध्ययन, पठन-पा. सार्मिक क्रियाकलाणे को गाड़ी मानिएर्वक आत्मसात किया। गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखते हुए माँ सुपार्श्वमती की छत्रछाया में धार्मिक ज्ञान के साथसाथ शालेय शिक्षा के क्रम को आगे बढ़ाया। बी.ए., एम.ए. प्राकृत, संस्कृत में करते हुए जैनागम के क्लिष्ट ग्रंथ षट्खंडागम पर शोध कार्य करने हेतु अग्रसर हुई। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के प्राकृत विभाग प्रमुख डॉ. विमलप्रकाश जी का कुशल निर्देशन, भाइयों का सहयोग मिला, गुरुओं का आशीर्वाद तो सदैव से था ही, स्वयं की निष्ठा एवं अटूट लगन ने शोधकार्य में सफलता दिलाई। 'षट्खंडागम में गुणस्थानविवेचन' विषय पर पीएच.डी. उपाधि से विभूषित हुई । गुरुमाता और संघ के प्रति सदैव पूर्णरूपेण समर्पित भावों से अध्ययनक्रम चलता ही रहा। स्त्रीपर्याय और भवसागर से पार होने का भाव संजोये ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी को सम्मेद शिखरजी में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। ज्ञान का तेज मुख पर प्रकट होने लगा। उपदेशों, विधानों, प्रतिष्ठाओं, धार्मिक आयोजनों, सामाजिक सुधारों, लेखन, अध्ययन-अध्यापन शिविरों जैसे अचेक क्षेत्रों में सराहनीय योगदान किया। गुरुआशीष से कार्यों में अच्छी सफलता मिली। सुमधुर भजनों की श्रृंखला ने भक्तजनों के हृदयों को अभिभूत कर दिया। पाणी की मिठास, शैली की सरलता, सहजता, भाषा का सरल प्रयोग श्रोताओं का मन मोह लेते । आर्यिकाओं का भरपूर आशीर्वाद पाया। कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी अच्छे धैर्य एवं पराक्रम का परिचय दिया। पूर्वांचल भारत के आसाम, नागालैंड, बिहार, बंगाल में आर्यिका संघ ने धर्म का डंका बजाया। धार्मिक प्रभावना की जिसमें प्रमिला जी का प्रबल योगदान रहा। पूज्य इंदुमती जी का वियोग सहा। संवत् २०३९ के
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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