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________________ बा. ब्र. डॉ. प्रमिला जैन __- संक्षिप्त परिचय - मध्य प्रदेश राज्य के संस्कारधानी नगर जबलपुर में श्रेष्टिवर पिता सिंघई रामचंद्र जी के परिवार में माँ श्रीमती पुत्तीदेवी के गर्भ से भाद्र कृष्णा द्वितीया संवत् २०१० को एक बालिका का जन्म हुआ। सांवली सूरत, मोहिनी मूरत, बड़े-बड़े नेत्र । परिवार में सबसे छोटी, अत: लाड़-दुलार की अधिकता में थोड़ा जिद्दी होना स्वाभाविक था। बालसुलभ क्रीड़ाओं से सबका मन मोहती हुई उम्र की सीमा पार करते हुए पाठशाला की ओर अभिमुख हुई। प्रमिला नाम से परिचित हुई। माँ के अभूतपर्व संस्कारों की छाप ने विद्वत्ता की अलख जगाई। अध्ययन के साथ-साथ धार्मिक, सामाजिक तथा शालेय कार्यक्रमों में अच्छी रुचि के कारण अनेक बार सम्मानित तथा प्रशंसित हुई। तीन भाइयों तथा दो बहनों से युक्त परिवार की संपन्न स्थिति के संग पूरे परिवार में प्रेम वात्सल्य मानों कूट-कूट कर भरा था। सुख-दुख की घड़ियों में सभी सहभागी रहते। पिताश्री शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ थे तथा माँ सुमधुर जैन भजन रचयित्री एवं गायिका थीं, जिन्हें 'कीर्तनरत्न' की उपाधि से विभूषित किया गया। बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ माँ के धार्मिक, नीतिज्ञ, सदाचारयुक्त संस्कार मिलते रहे। माता-पिता द्वारा दिये गये बचपन के संस्कार ही जीवन का लक्ष्य निर्धारित करते हैं। इन्हीं नीतिगत आधारों का सूक्ष्म प्रभाव उस नन्हीं प्रमिला के हृदय-पटल पर वज्ररेखा सदृश अंकित हो गया। बचपन की दहलीज पार करके यौवनावस्था में कदम रखा । परमपूज्य १०५ आर्यिका इंदुमतीजी का ससंघ पदार्पण नगर में संवत् २०२८ में हुआ। संघस्थ परम विदुषी आर्यिका सुपार्श्वमतीजी के प्रवचनों से जनसैलाब आनंदित हो उठा, धर्म की अच्छी प्रभावना हुई। एक दूसरे के द्वारा माताजी के प्रवचनों की बात जन-जन तक पहुँची। चैत्र कृष्णा तृतीया संवत् २०२८ को अपनी माँ के साथ प्रमिला भी माताजी के प्रवचन सुनने गई, पूज्य माताजी से परिचय हुआ। माताजी की शैली बहुत सरल, सुंदर, प्रभावशाली थी। सभी जन एकाग्रचित्त से प्रवचन सुन रहे थे। प्रमिला के हृदय पर प्रवचनों का विशेष प्रभाव पड़ा। माताजी के शब्द कानों में गुंजायमान होते रहे। समाज से धर्म के नाम पर मांगी गई निधि की बात प्रमिला के मन को उद्वेलित कर गई। यह बात उस समय की है जब संघ में ब्रह्मचारिणी बहिनों की कमी थी और बहनें उस मार्ग पर जाने की सोचती भी नहीं थीं। ऐसे विकट सपय में प्रमिला के मन में एक गंभीर मंथन चलता रहा। एक गांभीर्य मुख पर विद्यमान हो गया। सायंकाल घर लौटी। शांतिपूर्वक भोजन किया, चिंतन की धारा बहती रही। माताजी का संघ विहार कर अतिशय क्षेत्र पनागर पहुंचा। प्रमिला ने मन-ही-मन कुछ संकल्प लिया और अपनी माँ से पूज्य सुपार्श्वमतीजी
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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