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मिनाकर कराकार कति व्याप्त बपरत्रय:। साम्भीयों का शोणोष्य सौम्व हुलमन्दिरम् ॥ ७ ॥
माचार्य श्री कहने लगे, हे भद्रे तुम्हारा पुत्र चन्द्रमा के समान सुरुप, तीन लोक व्यापी कीतिबाला अर्थात् मुक्तिरमा वरण करने वाला, गाम्भीयं, प्रौदार्य, वीरत्व, प्रादि गुरण मण्हित होगा सौन्दर्य का प्राकार मोर कुल मण्डन-भूषण स्वरुप होगा ।। ७० ॥
त्रिवर्ग रचना सूत्र पारस्तम तनकहः । समग्र पुरण माणिक्य रोहगाडि रिवापरः ॥७१।।
त्रिवर्ग का सूत्र धार होगा । मर्थात् धर्म, अर्थ, भौर काम तीनों वर्ग एक साथ द्धिंगत करने में निपुण होगा, समग्र गुणयुत होगा। साक्षात् मारिणक्य पर्वत के समान तुम्हारा पुत्र रत्न होगा ।। ७१॥
भवं भूयिता भन्यो गगनं भानुमानिया फुलं कतिपयरेष वासरः साषु बरसले ॥७२॥
गगन में जिस प्रकार सूर्य अपने प्रताप से समस्त दिशानों को शोभित करता है उसी प्रकार कुछ ही दिनों में तुम्हारे कुल का भूषण भद्रपरिणामी पुत्र होगा, हे साघु वत्सले तुम शोक मत करो।। ७२ ।।
उल्लासं कमपि प्राप सेन सा वसा यते। षमान्त तोयवोन्मुक्ता तोयोनेव लता ता ।।७३ ।।
इस प्रकार के उत्तम साधु वचनों को सुनकर सेठानी को परमानन्द हुप्रा, मन में उल्लास मडा, मामों घाम-धूप से सूखी लता को शीतल मेष जल मिल गया है । अर्थात् ग्रीष्म ऋतु की भीषण धूप से लताएं कुम्हला जाती हैं वर्षाऋतु पाते ही वृष्टि होने पर जल पाकर प्रफुल्ल हो जाती हैं उसी प्रकार पुवाभाव की पीड़ा से शोकाकुल सेठानी पुत्रोत्पत्ति सुनकर हर्षित हो उठी । संसारी जीवों की यही दशा है ।। ७३ ।।
महा विस्मय सम्पन्ना सा शशस सभा मुनिम्। नत्त्वा ज्ञात या भावी वृत्तान्ता साप्यणान् गहम् ।। ७४ ।।
इस प्रकार मुनीश्वर की भविष्यवाणी सुनकर समस्त समा परमाश्चर्य को प्राप्त हुयी । सभी मुनिराज की शान गरिमा की प्रशंसा करने लगे। क्रमशः सभी नमस्कार कर अपने मपने घर पले गये । सेठानी भी भावी वृतान्त ज्ञात कर निम गृह को लोट मायो ।। ७४ ।।