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उसका काल आनन्द से व्यतीत हो रहा था। उसीके गर्भ से तुम (जिनदत्त) पुत्र उत्पन्न हुए ॥ ६६ ॥
यथा कामं ततस्तातो बन्धु लोक समन्धितः । चकार शिव देवास्यां भवतो भव्य बान्धव ॥ ७० ॥
तुम्हारे पिता ने यथोचित पुत्रोत्पत्ति महोत्सव मनाया। बन्धुबान्धवों ने समन्वित हो विधिवत तुम्हारा नाम करण संस्कार किया और "शिवदेव" नाम घोषित किया ।। ७० ॥
पूर्व पापोदया तत्र वद्ध से त्वं यथा यथा । क्षीयते यः कुटुम्म सा गेहे तपा तथा ॥१॥
पूर्व पाप कर्म के उदय से तुम जैसे-जैसे वृद्धिंगत हुए वैसे-वैसे कुटुम्ब के साथ-साथ धन को भी हानि होती गई। अर्थात् घर में धनजन दोनों ही क्षय होते गये ॥ ७१ ॥
अपरेयुः पतित्याशु व्योमतो विचूता दुजन् । हद्द मार्ग हतस्तातो यचा भूभस्मसात्तपा ।। ७२ ।।
किसी एक दिन तुम्हारे पिता व्यापारार्थ बाजार में गये। अचानक उसी समय प्राकाश से बिजली गिरी और तुम्हारे पिता वहीं उसके प्राघात से भस्मसात हो गये । अर्थात् मार्ग में ही अकस्मात विद्युतपात से मृत्यु को प्राप्त हुए ।। ७२ ॥
ततो शोकाकुलेनास्य सन्धुलोकेन निमिलम् । मृतकर्म रुरोवारं माता च करूणं तव ।। ७३ ।।
उस समय सभी बन्धुनों ने प्रत्यन्त शोकाकुलित हो उसका मृत्यु संस्कार किया। उस समय तुम्हारी माता अत्यन्त करूणा जनक रुदन करने लगी ।। ७३ ।।
हानाय स्वंगतस्त्यक्त्वा बालं बालेन्दु सुन्दरम् । कथमेषा भविष्यामि हताशा भवतोज्झिता ॥ ७४ ।।
हाय ! नाथ ! तुम इस वालेन्दु-पुत्र को छोड़कर कहाँ गये ? इस सुन्दर सुकुमार बालक का क्या होगा? मैं अापके द्वारा छोड़ी गई अब प्राशा विहीन हो जाऊँगो ? ।। ७४ ।।
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