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श्रेष्ठी भी अपने जमाई को पुत्रियों के साथ अपने घर ले गया और मानन्द से आदरपूर्वक उसका यथोचित सम्मान दान किया । यथा विधि स्वागत किया ।। ३० ।
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प्रारेमे चततः कर्तुं मुत्सवः सत पौर: सर्वोषि चायात स्तद्दर्शन
ससधाजनः ।
समुत्सुकः ॥ ३१ ॥
सेठ ने महान उत्सव प्रारम्भ किया। दर्शनों को सेंकड़ों की संख्या में उमड़ पड़े। नृत्यादि होने लगे । सभी उत्सुक थे ॥ ३१ ॥
नगर के नर-नारी उसके सेकड़ों प्रकार के गीत
तथा काल ततश्चक्रे सुख संभाषण विकम् । श्रेष्ठिना सोऽपि वृत्तं स्वमवादींवादि तस्ततः ।। ३२ ।।
माने जाने वालों का तांता कुछ समय बाद शान्त हुआ । यथावसर श्रष्ठी में कुमार से दुख संभावरा करना मार दिया। कुमार ने भी अपना समस्त वृत्तान्त आदि से अन्त तक क्रमशः सुनाया ।। ३२ ।।
नितम्बन्यो पितास्तस्य साभिज्ञानं सुविस्मिताः । प्रश्रौषु वृत्तमात्मीयं न्यगवंश्च यथा क्रमम् ॥ ३३ ॥
अपनी पत्नियों का वृत्तान्त भी सुनाया । श्रेष्ठी ने उन्हें पहिचान प्राश्चर्य से उन्हें भी उनका वृत्तान्त पूछा और क्रमश: सुनकर परम विस्मय को प्राप्त हुआ ॥ ३३ ॥
विदधे च जिनाबोशा यतनेषु समुत्सवम् । जिनार्था स्नानपूजाद्यं दीनावीनां विहाय तम् ॥ ३४ ॥
तदनन्तर कुमारादि ने श्री जिनेन्द्र भवन में महोत्सव किया । श्री जिनदेव की पूजा - पञ्चामृताभिषेक, भष्ट प्रकारी पूजादि कर, यतियों को दानादि दिया। दीन अनाथों को भी यथोचित वस्तु प्रदान की । इस प्रकार सुख से ठहरा ।। ३४ ।।
प्रथान्येयुः शुभे लग्ने सुमुहूर्ते शुभे विवाह मङ्गलं राज्ञा कन्याया स्तेन कारितम् ।। ३५ ।।
तिथौ ।
अथानन्तर राजा ने शुभ दिन, शुभ लग्न, शुभ मुहूर्त और शुभ
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