________________
।
निश्चित संभावित कर लिया कि ये इसी की भार्याएँ हैं। उसी समय राजा ने सुन्दर अलङ्कार, वस्त्र, ताम्बूल पुष्पादि द्वारा उनकी पूजा की प्रति विशेष सम्मान किया ।। २५ ॥
ज्ञात वार्ता स तत्रत्य विमलो परिणजी पतिः। नत्वेशंगाढ मालिङ्गाय जिनदत्तमुपाविशत् ॥ २६ ॥
यह वार्ता बिजली की भांति शीघ्र ही नगर में फैल गयी। विमल वणिक् पति ने सुनी तो तत्क्षण वहाँ प्राया। राजा को प्रणाम कर जिनदत्त कुमार के पास प्रा प्रीति से गाढालिङ्गन किया। उसने भी पिता स्वरूप श्वसुर को नत हो प्रणाम किया ।। २६ ।।
क्षेपिं परिपथ संबका पहरो नाम । जवाचेति यया देव कुमारः प्रेष्यतां गृहम् ।। २७ ॥
परस्पर क्षेम कुशल पूछी, और बेठ गया। वार्तालाप करते हुए अवसर पाकर सेठ ने राजा से निवेदन किया, हे देव कुमार को मेरे घर जाने की प्राज्ञा दीजिये ॥ २७ ॥
राशावादीदमेवास्य गेहं गुरण महोवधेः । पाप्येवं तथापीश गाढमुत्कण्टिता वयम् ॥ २८ ॥
यह सुनकर राजा ने कहा इस गुणसागर का यही घर है। 'यद्यपि यह आपका कथन सत्य है तो भी हम अत्यन्त उत्कण्ठित हैं" सेठ ने प्रत्युत्तर दिया। हमारा पूरा परिवार कुमार के दर्शन को लालायित है ॥ २८ ॥
संभाषादौ कुमारस्य किचौचित्य क्रमोस्तिन: । इति तस्योपरोधेन विसष्टोसौ महीभुजा ।। २६ ।।
दोनों के इस प्रकार वार्तालाप को सुन कुमार ने कहा इस समय इनका कहना उचित है, मैं भी जाना चाहता हूँ क्योंकि मेरा भी प्रौचित्य इसी में है। यही क्रम भी ठीक है । कुमार का प्राग्रह देखकर नृपति ने भी अनुमति दे दी। अर्थात कुमार को सेठ के घर भेज दिया ।। २१ ।।
सकान्तं सोऽपि तं नीत्वा मन्दिरे मुक्तिो भृशम् ।
सावरं विदधे तस्य तत्रौचित्यं यथा विधि ।। ३० ॥ १५२ ]