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तिथि में अपनी प्रिय पुत्री कन्या का विवाह उस कुमार के साथ यथा विधि सम्पन्न किया ।। ३५ ।।
राज्यालंकार पूर्वञ्च दत्त्वा देशादिकं बहु । महा सामन्त मेतं स चकार नर नायकः ॥ ३६॥
नरेश ने दहेज में अनेकों प्रलंकार, अनेक देश सामन्त प्रादि दिये। राज्यालंकार प्रदान कर उन्हें संतुष्ट किया ।। ३६ ।।
इस प्रकार नाना भीड़ाओं से प्रजा को प्रानन्द प्रदान कर वह सुख संतोष से जीवन यापन करने लगा। एक समय उसे अपने पिता-माता के दान का गान मारा : उसने न - इस प्रथम अपना कुशल समाचार भेजा।
प्रेषिताश्च कुमारेण पुरुषास्तात सन्निधौ । समयं बहु मेदानि द्वीप रत्नादि बेगतः ।। ३७ ॥
एक समय कुमार ने नाना द्वीपों से प्राप्त अनेकों अमूल्य बहुरत्नों के साथ पुरुष भेजा । वह भी वेग गति से उसके पिता के यहाँ पहुँच गया और वे रत्नादि भेट स्वरूप प्रदान किये ।। ३७ ।।
उपलभ्य च ताताधास्तदुवन्तं न मानसे । उल्लासेन ममुश्चन्द्र बिम्बादिव पयोषयः ।। ३८ ॥
अपने प्रिय पुत्र का कुशल समाचार एवं वैभव को पाकर माता-पिता प्रादि कुटुम्बी जनों को परमानन्द हुग्रा। जिस प्रकार चन्द्रोदय से सागर का जल उत्ताल तरंगों से उछलता है, उमड़ता है उसी प्रकार उनके मन का उल्लास वृद्धिगत हुमा ।। ३८ ॥
प्रेषिताश्च ततो लातु तस्य तातेन घागताः । तेऽपि प्रगम्यतां वाच मूखुरेख कृतावरः ।। ३६ ।।
पिता ने भी उन आये हुए सुभटों को तथा अन्य अपने योग्य पुरुषों को पुत्र जिनदत्त को लाने के लिए भेजा। ये सभी वहाँ पहुंचे । कुमार को प्रणाम कर मादर से कहने लगे || ३६ ।।
यथा विधीयतां नाय विलम्बेन विनोद्यमः ।
गमनाय किमयं स्थीयते स्व जनावते ॥ ४०॥ १५४ ]