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इस प्रकार अपना जीवन परिचय ज्ञात करा एवं उनको दुःखद कथा सुन उसे शान्ति हुयी। उसने मन में निश्चय किया ये ही मेरी अपनी सहेली है । क्योंकि मित्र वही है जो विपत्ति में धैर्य प्रदान करे । संकट में साथ निभाये । इस प्रकार सोचकर उनके साथ हो ठहरी ।। ५८ ॥
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वान पूजा भूताध्यायसङ्गताः शुभ संगताः । एवं तिनोऽपि ताः सन्ति तत्र प्रीताः परस्परम् ।। ५६ ।।
श्रब तीनों मिलकर, श्री जिनेन्द्रका प्रभिषेक पूजन, श्रुल का अध्ययन, दानादि शुभ क्रियाओं में रत रहने लगीं। तीनों ही परम प्रीति से सम्यक्त्व पूर्वक थपने कर्त्तव्य में रत हो गयीं ॥
५६ ॥
अथ रूपं परावृत्त्य वामनी सूयतां पुरीम् । स वयस्यः कुमारोऽपि प्रविश्याश्रनि गायनः ॥ ६० ॥
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इधर श्री जिनदस कुमार ने क्या किया ? यह ज्ञात करना चाहिए। विद्याधर कुमारी को सोते छोड़कर वह उद्यान से निकला । अपनी विद्या द्वारा बामन (बौना) का रूप बताया और चम्पानगर में प्रविष्ट हुआ I अन्य कलाओं की भांति यह संगीत कला में भी मति निपुण था । श्रतः बौना रूप धारण कर नाना प्रकार के सुन्दर सुरीले गानों से जनता को रमाने लगा || ६० ॥
गम्यं दस नामासौ वित्त कौतुक कारकः ।
गौ
राख्यायकः कान्ते अंहार जनता मनः ॥ ६१ ॥
इसने अपना नाम गंधर्वदत्त घोषित किया। यह सभी के चित्त को कौतुहल में डाल देता । सुन्दर-सुन्दर गीत गाता मनोरंजक कथाएँ भी संगीत में सुनाता, मधुर मनोहारी चरित्र गा गा कर सुनाता । इस प्रकार नगर की सारी जनता के लिए यह एक आकर्षण का विषय बन गया ।। ६१ ।।
दत्त्वा जीवनकं राशा विघृतो मिज गन्धर्बादि विनोबेन सत्रास्था ज्जन
सन्निधौ ।
बत्लभः ।। ६२ ।
यह वृत्तान्त वहाँ के राजा जीवक को विदित हुन । राजा ने उसे अपने दरबार में बुलाया और उसकी आजीविका की व्यवस्था कर अपने
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