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________________ ५२ जिरणवस चरित सा सामान बांध दिया गया। विमलामती भी सास श्वसुर के पांव लग कर उसी स्थान को चली ॥१४६॥ I १५० - १५१ ] न पंचदश गोहिरिए चले, बेगि मक्झि चंपारि मिले। res विमल तुम्ह नोकर कियड, प्राणि भिटाइय म्हारिय धीयउ || दिन दोड चारि तिहा ठा रहइ, पुणु उषाउ चलिये को करइ । सो जिदत्त, विमलमल कंतु, नंदरणवणु चल्लिद विषसंतु ।। अर्थ :- ( जिनदत्त के ) साथ में पन्द्रह ग्रादमी और चले और शीघ्र ही चंपापुर लाकर उन्होंने पड़ाव किया। विमल सेठ ने उससे कहा "तुमने अच्छा किया जो यहां लाकर मेरी लड़की से भेंट करादी" ।। १५० ।। दो चार दिन तो वहां वह ठहरा लेकिन फिर चलने का उपाय करने लगा | वह विमलमती का पति जिनदल विकसित होता हुआ नदनवन को चला ।११५११६ गोहिरिण - साथी । १. धोयो-मूल पाठ [ उबाज 1 उपाय १५२ - १५३ ] देखि वासुपूज्ज को भवणु, पंचमि साहि कराया हवणु । भयो परछतु न देख कोइ ॥ जणु मुलु सई तं जोइ, पुरिए असीस देइ सोधरणी, फूलह माझि होंति सिरह असीस भाभड़ी जाम, विमलामती । देख तम ॥ अर्थ :- ( उस नंदनवन में] वासुपूज्य स्वामी का मन्दिर देख कर जिनदत्त ने पंचामृत अभिषेक कराया। उसने अंजनी मूल (एक प्रकार की
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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