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________________ ३० जिered afte हि । राजा सेदि सु प साह, महू समु बलि अउर न महु लीला रस छ जाहि त ह उत्तरु बोबउ साहि ।। अर्थ :- जुवारियों ने हँस करके यह बात कही "तुम ने तो हमको टटोल लिया (हमारा मूल्य यांकलिया ) | यदि वह (जिनदत्त ) नगर-नारियों ! ( वेश्याओं) के साथ रमने लगे, तो ( उसके ) पीछे तुम उसे ( अपने लक्ष्य के अनुसार ) ठीक कर सकोगे ?" राज- सेठ ने उनसे कहा कि मेरे समान लज्जिस दूसरा कोई नहीं है इसे अधिक क्या कहूँ। वह जिनरत्त लीला रस ( भोग विलास ) में जब इच्छा करने लगे, तब हमें उसका उत्तर देना (विवाहादि के विषय में उसके विचार बताना ) । जइ ८ यत्रि । बलियच ८. श्रीडित नयर 4 नगर / लज्जित, JM शरमिस्वा " [ ७५-७६ ] वले वीर जिरणदत्त हकारि भवजोवली दिलालहि नारि । कवर और थका मनु भाव, पुणु बसहिं तु एक्कइ भाव ।। rets खोर जुवा रस रमई, कवर लेइ वेसा घरि वस । लइका ति महि किथन, सोविएतासु देवि हि ॥ अर्थ : वीर जिनस को बुला कर लें चले तथा उन्होंने नव युवतियों को दिखाया। किसी वीर ने उसका मन किसी ग्रभ्य प्रभंग में लगाया लेकिन जिनदत्त का मन एक में भी नहीं लगा 1४७५६ 1 कोई वीर उसे जुए के रस में रमाने लगा तथा कोर्ट उसे वेश्या के घर में ले जाकर रहने लगा। किसी ने उसे ले जाकर स्त्रियों के बीच में खड़ा कर दिया, तब भी उसका हृदय ( उनसे) विह्वल न हुआ ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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