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________________ जिनदत-अम्म प्रर्थ :-तब सेठ ने मंत्र (विचार) परिस्थापित (निर्धारित करने हेतु जुवारियों को बुलाया । नट तया घर जो बहुत कानि (लज्जा) नहीं करते थे उन सबको भी से ने जान बूझकर बुलाया ॥६॥ जो बार बार वेश्या के घर जाते थे तथा जुर्ना खेलते हुये तृप्त नहीं होते थे, जो चोरी करने में प्रालस्य नहीं करते तथा (दूसरों की) गांठ काट करके अपने घर के भीतर घरते थे 11७०॥ [ ५१-७२ । जिनु के शव गइम तिन्ह विठि, सो जप कियर मापुरणो मुठि । गंजणु कू मारि निघु सही, तिरिय सह सेठि बात साह कहो ॥ महो वीरु तुम्ह एसउ करहु, डिउ कुस मेरउ उबरउ । जो जिरणवस दिव्य मनु लाचं, निछय साख वामु सो पावै ।। अर्थ :--जिनकी दूसरों के धन पर दृष्टि जाती थी उनको उसने अपनी मुट्ठी में कर लिया। जिनका कार्य तिरस्कार करना (कपट करना) एवं मारना (इस प्रकार का) मभी कुछ था, उनसे मी सेठ ने वे सभी बार्ने कहीं ॥७११६ “अरे वीरो तुम इस तरह करो कि मेरे डूबे हुए वंश को उबार लो। जो जिनदत्त का मन विषयों को प्रोर लगा देगा, वह निश्चित रूप से एक लाख दाम पावेगा ।।२।। गंजण /_ गञ्जन - अपमान, तिरस्कार 1 धाम /. द्रम्म – एक सोने का सिक्का । जुवारिउ हंसि बोलह वोसु, तुम्हि तो परिज हमारी तोलु । जहया रमा नयर नर नारि, तब तुम पार्छ सका सवारि ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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