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________________ न्तुति शल प्रय :-चन्द्रमा पोष्टश कला पूर्ण कहा जाता है, वह संपूर्ण रूप से अमृतमय है और सबके लिए शीतल (होता) है। यदि उसकी किरणें तीनों मुवनों को प्रदीप्त (प्रकाशित) करती हैं, (तो भी) अपनी शक्ति के प्रमाण से (सामर्थ्य पर) जुगुन तपता (चमकार) ही है । पुरण - पूर्ण । अमिउ - अमृत । सीयल - शोतल ।। तिहुवरण - त्रिभुवन । पमाण - प्रमाण । जोगणा - जुगनू - खद्योत । 1 २५ ] हाथ जोड जिधर पय पडउ, पोपराग सामिय मणि धरउ । जस्य होह कुलदसणे मधु, जिरणवत्त रपज पउपई वेषु ॥ अर्थ :- हाथ जोड़ कर मैं जिनेन्द्र मगवान के चरणों में पड़ता हूँ सथा वीसराग स्वामी को मन में धारण करता है, जिससे कुकवित्व अंधा हो जाए, और मैं जिनदत्त (की कथा) चउपई बंध (काव्य रूप) में रच सक। पप - पद । वीयराग - धोतराग 1 सामिय - स्वामी । कुकइतणा - कुकवित्व । ग्यउ - रच-रचना करना । (कत्रि परिचय) जइसवाल कुलि उत्तम जाति, वाईसद पाडल उतपाति । पंचकलीया पाते कर पूतु, कवइ रहु जिरणवत्त चरितु ।। अर्थ :-जैसवाल नामफ उत्तम जाति के बाइसर्वे पाटल गोत्र में मेरी उत्पत्ति हुई है। पंचऊलीया माते का जो पुत्र है ऐसा कवि रल्ह जिनदत्त चरित की रचना कर रहा है ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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