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________________ --- -... सबसे विस्तृत वर्णन मगध देश एवं वसन्तपुर का है जो हमारे नायक का जन्म स्थान था। यह वर्णन परम्परा-मुक्त है । कान्द ने कहा है कि उस समय का व सबसे सुखी एवं वैभवशाली नगर था, जहाँ घर२ में ग्राम के पेड़ थे, जहाँ केला, दाख एवं छुहारा के पेड फलों से लदे रहते थे। अतिथियों का स्वागत सत्त से किया जाता था । दुष्टों के लिए दण्ड व्यवस्था थी लेकिन वहाँ चोर-चरट कहीं भी दिखलाई नहीं देते थे । वह नगर मानों साकेतपुर था। यह धनधान्य से पूर्ण एवं ऊंचे ऊंचे महलों वाला था। ममी जातियों के लोग उसमें बसते थे । कवि ने उसे स्वर्ग का एक टुकड़ा हो कहा है । इसी तरह - -- १. सवतरण पाउ वत्थ जहि टाउ, मगह देसु तहि कह्यि उ गाइ । पारि घरसिा अवासहि चडी, जणु त्र छुटि सग ते पड़ी।।३११३ गिणगुणहु देसु तयों व्योहार, घरि घरि सफल अंवसाहार । कारहि राजु सकुटंबउ लोइ, परतह दुखी न दोसइ कोइ ॥३२।। पहिया पंथ न भूखे जाहि, केला दाल छुहारी लाहि । मामि गामि छेते सत्कार, पहियह क्रूर देहि अनिवारु ॥३३।। गामि गामि बाड़ी अंबराइ, जइसे पाटण तेमे ठाइ । धम्म वि गरु भोयरा देहि, दाम विसाहि न कोई लेहि ॥३४॥ गांकर कूड दंड तहि चरइ, अपुराइ सुखि परजा व्यवहरह । दोर नु चरा यांखि देखिये ग्रह पररणारि जगणि पेखियइ ।। ३५।। मगह दे भीतर सहि मार, वासव सुरह अहिउ सो बारु । घग का कच ' मन्त्र विभूर, मंदर लुग पिहिय कय सूर ॥३६।। चरिणावं मण वद वासीठ ।। वाइ बेसा यरुद्ध बंदरा, त्रिवारी विहारहं । ना चाह वारी धुरु वह विहार जीवरखहं ।। अरु बिहारि वारिठिया बुह विडह वरिण पार । नह वसंतपुरि रल्ह कहि चयीय कार ।।३७॥ सीस
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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