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________________ जिनदत्त के चरित में साहस और वीरता के स्थल हैं। देशाटन के लिये निकल पडना, सागरदत्त की गिरी हुई पोटली के लिये उसका समुद्र में कूद पडना, तथा अन्य अनेक उदाहरण इस संबंध में दिये जा सकते हैं । कवि ने इन प्रसंगो में भाव चित्रों को प्रस्तुत करने का प्रयास अवश्य बहुत कम क्रिया है । जिनदत्त ने जो कौतुक दिखाए हैं, वे प्रद्भुत रस की सृष्टि करते हैं। कुछ ग्रन्य रसों का भी यत्र तत्र समावेश हुआ है । धन्य काव्य का मुख्य छन्द चउपई है किन्तु वस्तु बन्धछन्द का भी खूब प्रयोग हुआ है 1 काव्य के ५५३ पचों में से ५५३ चउरई छन्द एवं वस्तु बन्न हैं लेकिन कितनो चौपई छन्द के बाद में वस्तुबन्ध छन्द प्रयोग होगा इस का कोई निश्चित सिद्धान्त कवि की दृष्टि में नहीं था । वस्तुबन्ध तथा चौरई छन्द का प्रयोग उसकी इच्छानुसार हुआ है। काव्य में दोहे छन्द का भी प्रयोग हुआ है । की गई है। समग्र रूप से रचना उपई-बन्य काव्य रूप में प्रस्तुत जिससे यह प्रकट है कि उसका मुख्य छन्द वज्रपई है, केवल एक रसता निवारण के लिये उनमें कुछ अन्यों का समावेश भी कर दिया गया है । वन और उल्लेख प्रस्तुत काव्य में जिन वस्तु व्यापारों का वर्णन ना उन्हें हम निम्न श्रयों में विभक्त कर सकते हैं: (१) देश एवं नगर बरन- इस काव्य में मगधदेश, (३१) बसन्तनगर (४०-४२), चंपापुरी ( ८६८ ) दपुर (१६०), वेणानगर ( १३६ ), कुण्डलपुर ( १६६ ), भंभापाटन : (१६६) मदनद्वीप, पाटल डीप (१९६), सिंहद्वी २००-२०११ रथनुपुर (२६) प्रति देशों, नगरों एवं द्वीपों का वर्णन एवं उल्लेख हुआ है । उनतीम
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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