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________________ विनवा - विनती - ४१६, बियारि - विचार - ५२१, ५२३, विनु = बिना – ४६, ३१४, ३१५, वियूर = पूरित -- ३६, विनोद = रंजन - ६९, २८०, ३२८, ! वियोड़ - विवेक - ५४०, विश्न - - ५५३, वियोग = निरहूँ - १७७, विनिवि = निकलती है - ५.२, चिरत = सम्प - ६४, ६५, विपरितु = विपरीत - ३२६, विरध = वृद्धि - ६३, विष्पह - विप्र -- ११२, विरयउ = विरचित – ५५०, विप्पु - । - १०५, ११२, विरल = बिरला - २१४, विप्पुरिउ = विस्फुरित - ३०, विरली - - २१४, विप्र = -४४१३ बिरसोरर :- विजोग - ४१३, विभृम = भ्रम - २८०, विरह = वियोग – ४००, ...... प्रानि, विभूषित = भूख रहित - ३२५, विरिणि = विरहिणी - ३१६, विमल - विमलनाथ - ५, ११०, आदि विरुद्ध = विरोध में - ३५२, बिमलमइ :- विमलमति (ती) - | विरुद्ध = विरुद्ध - ३५०, १०१, १५४, | विरूप = सुन्दर - ३२८, ४०३, विमलमति = , - ११७, विलखत्रि = विलसना - ३०७, विमलसेठ -- विमलसे - १६, विलम्बाइ = बिलखते हुये - १२६, विमला = - ४५०, १३७, ....... 'आदि, विमलागणु = - ५२७, विलखाणि उ = रोते हुये - २३६, विमलामइ = विमलामती - ४४४, विनिया = - ४६८, विमलाति = , - १०६ | विलनीइ = गे-कर - ११०, विमलामती = - ३३८, । विलम्तो = बिलखना - ३५७, ४१८, विमलासेठिणी = विमला नाम को बिलबह = व्यतीत करना - ३००, सेठाणी - ६, विलसाइ = भोगने लगे ........... विमलु = बिमल - १२४, ३१६, आदि ! विलसहि - विनराना - ४१३, विमलुमनि = विमलमती - ३२५, जिलमंत = भागता है - २६६, विमाण - विमान - २६६, २६७. | बिलानी - १३३, वियखल = विचक्षण - ३४१, विलालि ; वेलाकुल ......... .' विग्रसाइ = हंसकर - १६३, २०६ . बिलाए = विलादा – ४०३. वियसिंउ = त्रिकसित - ३६८, | बिलावल = वेग का ना। --१८६. चियमंतु = -१५१, आदि, | विलारा = .. ... ... - ५०२, ५०४, वियाधि = व्याधि, बीमारी -२०३, | बिलासगइ = विजाग गति - १०१,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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