SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निलिखाइ = बिलखना - ३१३, घिसाहि = खरीद कर - ३४, विलंका = विश्राम किया -१६०, विसोसु = विश्वाम - ४६६, विवक = सविधररण - १०८, विसूरिउ = - ४१४, विवह = विनिष्ट - ३२३, बिसेपद = विणेपता लिये - ८९, विवहार-व्यवहार - ६७, विड़ि - विघट - २६३, विवाग = विमान - ४४.७, विहप्पई = वृहस्पति - १३, विदारणु = , - ३६९, विश्यउ = विलगना - ४११, विवारी = - ३७, विहलपन = विह्वलांग - १०६, ११८, विवाह = - ११६, १२६, बिहसरणदे - - २७३, विबाहर - विवाहमा - ३६२, विहमाङ = मकर - १६२, २१७, ३०१ विवाहणु - विवाह के लिये - १२२, | विहसत = , - २१५, विविह = -५३४, | बिहारण = प्रात.काल............. विवुह - विबुध - २२, बिहार - जिन मदिर - ७, पादि, दिचुहजण - विबुधजन - २१, विहारइ - - ३७, (विद्वज्जन) विहारह = विवेय - विक- ५४१, ५४३, ५४४, | विहारतु = मंदिर में - ३६५, विवोय = वियोग - १५८, बिहारि = मंदिर - ३७, ....'मादि, विशाल - पुत्र का नाम - २२२, बिहारी = ॥ - ३३८, विषम = गहा - २५४, विहितहि = बहुत - ६१, विषमु = , - २५६, विहिवसेरण - विधिवशात (भाग्यवश) विषय = विषयों में - ६७, ३२, विषयन - सुख (मौक्तिक) - ३०६, | विहीर = विहीन - ३६, ३७३, विषयह = विषय पर -६६, | बिहु - कुछ – २५१, विष - में - ३४, ' विदु = जानना - २३, विसउ = विश्व में - ५२७, । विभई : - ४३१, विसमाउ - विस्मय - ४८६, विमउ = विस्मय - १०२, २२१, विसमु = विषम ('मयंकर) - ३८६. विभिउ - विरिमत - ८०, विसय = विषय - ६८, वीकठ = -१८२, विसहर = विषधर (सर्प) - ३६६, | वीचि = - १६६, विसहरु = सपं - २२६, २२६, वीतराग = -३५१ विसासु - विश्वान - ४२३, वीनी = व्यतीत - ३०७, विसाहण - खरीदने को - २०६ । वीनती - प्रार्थना - २३७,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy