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________________ वासीठ = बसी - ३७, वासु = बांस - १६२, वासुपुज्ज = वासुपूज्य - ५, १५२, वासे = - १८१, वाह = विमान वाह = डालती है - १००, = वाह्न २६६, वाहण " वाहरणु चारि = बाहर चहहि - बहाना वाहु = भुजाओं बाहूडि = अ वांदिर = बंदर ३:३५, = = = = - - = = - नांवरच बौना - ४००, १५८, विजय = विमुक्त विकत विकेरण विक्रय २०१, विक्रम विकास - ४१६, विगमच विगसाहि = प्रसन्न हुए विचार = विचार - ८३, वित्रि = मध्य में - २६६, विचित = विचित्र - २६८, विचि-त्रिचि = बीच- २ मे १३५, विच्ारज = विस्तार करें - १३, विछूरनि - ४३१, विजज: - १८१, विजय मंदिरु = महल का नाम विजयादे = विजयादेवी - २०२, विजाहरि विद्याधरी ८३, ११६, बिज्जउ = विद्यामों से २६०, - - ३०, ३१०, ४०५, - ४४६.४७८, ८०, ३५१, ३६७, ४८, - ३१६, ३६७, आदि, - = विकसित - १११, - २२६, — १५२. १५७, २६०, TH - २२१ विज्जनु = विद्याओं से - २६०, ६३, २८६, मात्रि, विज्जा = विद्या विज्जागममार = विद्या तथा आगम का सार १५, बिज्जातारणी = विद्यातारणी - २०७ आदि १८२, २६७, .....श्रादि विज्जाहर = विद्याधर विज्जाहरिय विजोग = विदह = - ३७, बिडे = विटप (वृक्ष) - १६८, विइ = बढ़ाकर - १३८, १३६, त्रिवहि = वृद्धि - १३८, १४०. विदनी = कमाई हुई पूजी - १३७, निए = बिना ५०१, ५०२, आदि विखउ = विनय - २६७, - वियोग - - = विद्याधरी - २६८, - — - २२५ ४०५ विरणबइ - विनय से - ३५६, ५३६, विश्वहि = निवेदन करो - ५४३, विष्णु विमान - २६८, = त्रिति = दो - ४१५, विगी = बेणी - ६, विशु = बिना वित्रा बीत गये - १, वित्त - घन - ५११, वित्यु = विस्तृत - ५४८, वित्थरज = फेंकना - २६५, वित्थार विस्तार विदेश - विदेश ४१. = नष्ट करना - विद्ध सइ विनान विज्ञान - २८०, ४८, १३१.... आदि 4-**** ४३२, ३४६,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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