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________________ दूस से भेंट १४३ उसर प्रोसर । अवसर - राजसमा पाहुउ ८.प्राभूत -उपहार चन्द्रशेखर राजा के व्रत को जिरपदत्त से भेंट जाई पहतउ सिंह उवारि, हाकिज करण्इ र परिहारि । को तुम पूछ कह तुरंतु, जइसा राउ जगायउ पत्ति ।। इहा जु चंसिखरु भाराज, तुहि वह मागइ भेंट पसार । सीलवंत गुण गणह संजुस, हज तहु केरउ प्रापड तु ॥ मर्थ :-वह सिंह - द्वार पर आकर पहुंचा तो प्रतिहारी ने स्वर्ण-दंड हाका (हिलाया) । उसने दूत से पूछा, "तुम कौन हो शीघ्र बताया जिससे मैं राजा के पास जाकर बाल बताऊ । ।।४६५।। (दूत ने कहा), " यहाँ जो चंद्रमोखर नामका मट (योद्धा) राजा है, वह आपसे भेंट की कृपा चाहता है । वह शोलवान एवं गुणों से संयुक्त है, मैं उसका दूत आया हूँ ।। ४६६।। [ ४६७-४६८ ] भीतर वास कहहि पडिहार, सिरप राइ गरणावर सार । पाहुड ल वह रयण प्रहह, पूचित्र चंदसिझर मह कहह ।। आणि भिटाहि बोलिउ राउ, गउ परिहार इतु के अउ । राजा तुम्ह कउ किया पसाउ, भीतर इतु प्रवभारतु पास । अर्थ :- प्रतिहारी ने भीतर (जाकर) बात कही सथा शोध राजा को बात बता दी । वह बहुतेरे रत्न उपहार स्वरुप लिए हुए है, और मैंने पूछा तो वह अपने को चंद्रशेखर राजा का (दूत) बतलाता है ।।४६७।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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