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________________ चतुर्थ विवाह अर्थ :- ज्योतिषी ने कहा, "लागी की रोति के अनुसार इन दोनों में आपस में बहुत प्रीति होगी । मैं ज्योतिष का भेद जानता हूँ, तुम्हारे ऊपर अ ( वीतराग ) देव प्रसन्न हो गये हैं । ॥४४२॥ गोधूलि में विवाह निश्चित किया और जो अच्छा वार एवं दिन था नहीं कहा गया | गहरे हरे यांसों की चौरी रची गई तथा पूर्ण कलश की स्थापना करके तोरण ( लगाये गये ) १।४४३९ लाग • ग्रहरण स्वीकार - जिरगवत्त का चतुर्थ विवाह [ ४४४ - ४४५ ] वाजे पंच सबब गह गहे, ठाठा लोउ मिलि सदु कण्ण विष्णु फेकिउ बसारि परिरगाई विमलाम नीलामणि मरगजमणि ऊज, पउमरन्छ मरिण अनुवद चंद्रकंति मुत्ताल भरणे, ते सह दिम दाइजो अर्थ : -: जोर जोर से पाँच प्रकार के बाजे बजने लगे तथा लोग उठ कर एक स्थान पर मिले। उसे फेकिइ (घोडे ? ) पर बिठाकर कं दिया (?) तथा विमलामती नारी जिनदत्त को व्याह दी ||४४४ । ४४६–४४७ ] साह वाहणु देस कुछार, अर्थ द्रव्य छत्ता लंब चमर वह कापि चाउरंग यल १३७ अफ रहे । नारि ॥1 ड्रज । घर || नीलमणि, मरकतभरण चमकली हुईं पद्मरागमरिण तथा वैडूर्य, चंद्रकांत एवं जो मुक्ताफल कहे जाते हैं उन सत्रको उसने डायजे (दहेज) मे दिया || ४४५|| १ मूलपाठ मउमराइ " बोनिज भंडार । यपि ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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