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________________ बौने के रूप में १३५ बोली "मुझे छोड़ कर ये समुद्र में कूद पड़े थे । तीसरी ने कहा 'मुझे सोती हुई छोड़ कर ये तुरंत चने गये थे । हे प्रिय | क्या कल की बातों का स्मरण । ४३६-४३३ ] इहा सयल भोग महि रहिउ, बारह वारिस कष्ट तुम सहिउ । एह बोलु मति बोलह भूग, तुम्हहि कष्ट हमुहि कि मुख बसेठ । सब जिनयत्त कहइ सतिभाउ, तुम्हहि दुख मुघरि वहि जाउ । पाषा कष्ट्र गयो फुड कालु, प्रग मुख राणु करहु प्रसरालु ।। अर्थ :-- (स्त्रियों ने कहा) यहां तो हम सकस भोग मोगती रहे और तुमने बारह वर्षों तक कष्ट सहे 1 इस प्रकार झूठ मत बोलो, तुम्हारे कष्ट क्या हमें तुम्हारे मुख पर दिखाई दे रहे हैं ? ॥४३६।। सब जिनदत्त ने सत्यभाव से कहा, "हे सुन्दरियों, तुम्हारा दुख वह जाए (नष्ट हो)। कष्टों का स्फुट काल पब पीछे चला गया (लद गया) । अब तुम निरन्तर सुख का राज्य करो ।।४३७।। [ ४३८-४३६ ] जिनस तिरियनु मेलउ भयो, चिर भवियर पाल हि गयो । हरस्यो विमल सेठि तिह आइ, सा राजा ठि लागिज पाह ।। गरबा सभा प्रचंभी भयो, जिणात कोरसि बह दिह गपऊ । घउसय तीसा चौरहो, पंडिय राइसीह णिह कही ।। अर्थ :--जिनदस और स्त्रियों का मिलन होगया तथा उन मयिकों के चिरकाल के पाप दूर हो गये । विमल सेठ उस स्थान पर बड़ा प्रसन्न हुया तथा सब राजा के चरणों से लगे ।।४३८।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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