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________________ बौने के रूप में १२५ नारियों तुमसे हम एक बात पूछते हैं । राह कवि कहता है हम (इसकी बात पर) कि ये तोनों ही मेरी स्त्रियां हैं, प्रतीति नहीं करते हैं" ।।३६६।। [ ४००-४०१ । विमलामतो कहइ बात सुरिण हो स्वामी ताता । यहु तउ वांवरणउ भइ दोरणा बरणउ कहा हमारी कंता ।। ग्रम्ह पिउ चंगु सुगुणगुण मुठि माह रुवाउ । इहु वोलह झूठउ विरह न बोठउ दोराउ कूवार ।। पुणु पण गे बोला निता गेलइ परे प्रचागले । कि बोलहि नारी भिक्खाहारी जोह भागले । म्हारी फंता जो जिरणवत्ता वह छह घराउ । तू तहु वायण करहिन मगु रंजावहि लोयण तरराज । अर्थ :-विमलामती कहने लगी, "हे स्वामी और तात, बात मुनो यह तो बौना है तथा अत्यन्त दीन बचन कहने वाला है और यह अपने को हमारा पति कहता है : हमारा पति स्वस्थ है, पर्याप्त सद्गुणोंवाला एवं अत्यधिक रूपवान है । यह झूठ बोल रहा है । हमें तो विरह में यह दीन कुत्रा दोखा भी नहीं है 11४०७।। तू बार बार यही कहता है और तेरा चित्त, परे दृष्ट (इस प्रकार) डोल गया है ? अपनी जिह्वा के अग्रभाग से ऐ भिक्षा मांग कर खाने वाले ? तू क्यों कहता है कि हम तेरी पत्नियां हैं ? हमारा स्वामी तो जिनदत्त है जो अत्यन्त रूपबान है । तू तो बौना है, करही है, तथा अपनी अस्ति एवं शरीर में लोगों का मनोरंजन करने वाला है ।।४०१॥ अइ /. अति । करही - ऊँटनी पर सवारी करने वाला ।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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