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________________ (३४४४३६०) इसी समय राजा के महल वा एक हाथी उन्मत हो गया और सब बंधन तोड़कर वह नगरी में स्वच्छंद फिरने लगा । चारों ओर कोलाहल मच गया। तीन दिन तक यह हाथी किसी से भी नहीं पकड़ा जा सका । लोग नगर छोड़कर भागने लग । राजा ने घोपणा की कि जो भी वोर हाथी को वश में कर लेगा उसे वह अपनी कन्या एवं प्राधा राज्य देगा । बौने ने राजा की घोषणा को स्वीकार किया । बौने ने विद्या-जल से हाथी को वश में कर लिया, उसने उस पर चटकर खूब घमाया और अंत में उसे ले जा कर ठा में वाँध दिया । बोने का यह चमत्कार देखकर उपस्थित जनता ने उसको जयजयकार की। (३६१ से ३८४) बौने ने राजा से राजकुमारी के साथ विवाह के लिय कहा । राजा जिन मंदिर गया और उसने अपने गुरु से सारी बात कही । गुरु ने राजा से जिनदत्त द्वारा किये गये अबतक के कार्यों का सविस्तार वर्णन किया । फिर राजा ने बौने को वास्तविक बात बताने के लियेकहा तो वह राजकुमारी के साथ विवाह करने से इन्कार करने लगा । मंत्रियों ने राजा से बौने के साथ राजकुमारी का विवाह करने के लिये मना किया । (३८५से४२७) मंत्रियों ने बोने से फिर अपने जीवन को सत्य कथा कहने के लिये कहा, तो उसने अपनी सारी राम कहानी कहदी और कहा कि विहार (चैत्यालय) में रहने वाली सीनों स्त्रियां उसकी पलियां थी । यह सुन राजाने उन स्त्रियों को बुलाने भेजा, तो वे मौन धारण कर बैठ गयीं । इस पर राजा, मंत्रीगण एवं प्रजाजन उस चैत्यालय में गये और उनसे बौने द्वारा कही हुई बात पर प्रकट करने के लिये कहा । बौने और उन स्त्रियों में खूब बादविवाद हुआ। तीनों स्त्रियों ने उसे अपना पति मानने से इन्कार कर दिया तथा हृप्पा सेठ की कथा कही जिसके विदेश जाने पर एक दूसरा घूतं पाकर हप्पा सेठ बन गया था और उन स्त्रियो ने भी उसे अपना स्वामी मान लिया था। (४२८से४४६) अन्त में तीनों स्त्रियों की उसने परीक्षा ली । उसकी परीक्षा में सफल होने के पश्चात् जिनदत्त ने अपना वास्तविक रूप धारण किया। बारह
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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