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________________ वह कामदेव के समान देह वाला हो गया। सभी उसके रूप को देखकर चकित हो गयीं । तीनों स्त्रियां उतके चरणों में पड़गई प्रौर मपनी २ कथा कहने लगी। राजा ने मी उससे क्षमा मांगी तथा अपनी राजकुमारी का विवाह उसके साथ कर दिया । राजा ने उसे अपार धन, सम्पदा, एवं हाथी घोडे प्रादि वाहन दिये । (४४७से ४५६) जिनदत्त कुछ दिनों तक वहाँ रहने के पश्चात् सागरदत्त से मिलने गया । उसके पापोदय से हाथ-पांव गल गये थे । जिनदत्त ने उससे अपना सारा घन से लिया और चम्पापुर से विदा लेकर यह अपने देश यसंतपुर को रवाना हुआ । उसने अपने साथ एक बड़ी भारी सेना ली । उसकी सेना को देखकर बड़े २ राजा कांपने लगे और इस तरह वह बड़े ठाट-बाट से से वसंतपुर के समीप पहुँच गया । (४५७से ४६४) वसंतपुर को प्रजा सेना को देखकर घर से भागने लगी सथा सारा नगर सेना से बेष्टित हो गया । खाइयां खोद कर उन्हें जल से भर दिया । चन्द्रशेखर राजा ने प्रजा को सान्त्वना दी और कहा कि जबतक उसके पास दो हाथ हैं, तबतक कोई भी शत्रु परकोटे में पर नहीं रख सकता। चारों मोर मोबिंदी होने लगी। राजा ने अपने मत्रियों से मंत्रणा करके वास्तविक स्थिति जानने के लिये जिनदत्त के पास दूत भेजा। (४६५से४७४) चन्द्रशेखर का दूत जिनदत्त के दरबार में गया और उसने उसके आगे रत्नों का थाल रखकर यथायोग्य अभिवादन किया । दूत ने जिनदत्त से व्यर्थ ही प्रजा का संहार न करने एवं उचित दण्ड लेकर वापस लौटने के लिये प्रार्थना की। लेकिन जिनदास ने कहा कि उसे किसी प्रकार के दण्ड की आवश्यकता नहीं। वह तो नगर सेठ जीवदेव एवं उसकी पत्नी जीवंजसा को लेना चाहता है। दूत ने सेठ के पवित्र जीवन की प्रशंसा की और कहा कि संभवतः राजा ऐसे भव्य पुरुष को नहीं दे सकता। लेकिन जिनदत्त ने दूत की एक न सुनी और शीघ्र ही उन्हें समपित करने का मादेश दिया । तेरह
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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