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________________ ( २९६ से ३१९ ) वहाँ सबसे पहिले उसने वही वाडी देखो । वे दोनों उस रात उद्यान में ही ठहर गये। पहिले जिन्दल सरे गया और बाद में पगारमती सो गई और जिनदस जागने लगा। जिनदत्त ने अपनी स्वो को मपना कौशल दिखलाने के लिये बीता का रूप धारण किया। सारमती जब जगी और उसने जिनदत्त को नहीं पाया तो वह विलाप करने का नाम लेकर रोने लगी। इतने में ही वहाँ विमल सेठ आया और उसे वैद्यालय में ले गया जहाँ विमलमती एवं श्रीमती पहिले से जिनदत्त की प्रतीक्षा कर रही थी । लगी । वह जिनदत्त ( ३२० से ३३३ ) जिनदत्त बौने का रूप धारण कर नगर में अनेक कौतूहल पूर्ण कार्य करने लगा। उसने राजा से भेंट की और अपनी स्थिति पर उससे निवेदन किया | उसने कहा कि वह भूखों मरने के कारण ब्राह्मण से बौना बन गया है। उसने राजा से उसके द्वारा किये हुये कौतुक देखने की प्रार्थना की । राजा ने उसे आज्ञा देवी । वह खेल दिखलाने लगा। वह अपनी विद्यात्रल से प्राकाश में उड़ गया और अनेक ताल घर कर ताली बजाने लगा ! राजा ने प्रसन्न होकर उससे पुरस्कार माँगने के लिये कहा । तब राज सभा के किसी सदस्य ने कहा कि यदि यह विमल सेठ की तीनों लड़कियों को जो त्यालय में मौन रह रही थी बुला सके तब हो इसे पुरस्कार दिया जाए । चौने ने कहा कि मानव ही नहीं वह पाषाण प्रतिमा को भी बुला सकता है । फिर उसने विद्यावल से पाषाण की शिला को भी हंसा दिया । ( ३३४ से ३४३ ) राजा ने फिर उससे पुरस्कार के लिये कहा । इस पर किसी अन्य व्यक्ति ने कहा कि जब तक वह त्रिमल सेठ की तीनों लड़कियों को नहूँमा दे, तब तक उसे पुरस्कार नहीं दिया जाए। जिनदत ने यह भी स्वीकार कर लिया और एक २ दिन उक्त तीनों में से एक २ स्त्री को बुलाने के लिये कहा । उसके कहे अनुसार बारी २ से वे स्त्रिया आई और जिनदत्त ने उनकी सारी बातें बतलादी । इससे राजा और भी प्रभावित हुआ । ग्यारह
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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