SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौने के रूप में नोव (सोने की इच्छा की लोगों का कहना सच्चा हो गया कि जागते ? हुए किसी को भी चोर नहीं चुरा सका है ॥३१११। गढ़ - प्रवेश-प्रासक्ति तल्लोमता । नूष मूष चुराना - १ ३१२ - ३१३ ] गही वरि परि कूट हिपज, कवळु दोसु मइ सामी कीपर भूकी वरण माह | जणु कछु श्रीवरण बीज नाह, तर काहे कियो मोहि वज्र की हियउ, कि वय पाहण शिम्मदियउ । सून विम्पण देखि विलिखाद, किन फाहि हि चरडाइ ॥ EE अर्थ : आवेश में भी (ग्राकुल- व्याकुल होकर ) वह अपनी छाती कूटने लगी ( तथा कहने लगी, "हे स्वामी, मैंने कौनसा अपराध किया है और यदि तुम्हें कुछ भी अवगुण नहीं दिखा है, तो फिर क्यों वन के मध्य तुमने मुझे छोड़ दिया ||३१२ ॥ क्या (विधाता ने मेरा वज्र का हृदय किया है प्रथवा उस देव ने उसका पाप से निर्माण किया है ?" सूने विमान को देखकर वह रोने लगी तथा कष्टने जगी, "मेरा हृदय चरड़ा (नरवरा) कर क्यों नहीं फट जाता ? ३९३ [ ३१४-३१५ । तुहि वी भुहि रहहि परारा, तुहि वोह पर जियउ शिया । सुहि विनु उर न देखउ आणि पिय जिवस मिसर साखि ॥। मा को निसएस, कोहे पिय छोडी परदेश | जन किमु माह दिनु जियउ, इष किसु देखि सहा हिट || सद्द अर्थ :- तुझे देखने पर हो मेरे मार रहेंगे तथा तुझे देखने पर ही में
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy