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________________ जिरायस परित वस्तु बंध धरण विषयन ललित सुकुमाल । खोपोवरि ससिवरिण करणय 'वूडमणि हार मंडिय । मोतिय गींव भरि पियगुरण गहि कार इंजय ॥ पुण धम्मक्किम जोवइ विसइ, उठि जवु जोइप पासु । मन्म बिमाहि रमह का तिरी न देखाइ ताम् ।। पर्य :-यह पन्या (स्त्री) सुख सम्पदा में पनी हुई सुन्दर एवं सुकोमल थी । वह क्षीरसोदरी तथा शि बदना थी; स्वर्ण चुडामणि एयं हार से मंडित (सुशोभित) थी । नींद भर सोते हुए वह गुणगत प्रिय (पति) द्वारा क्यों छोड़ दी गई ? पुनः (तदनन्तर) धमकी (रतमित) होकर दिशाओं में देखने लगी । अपने पाय (बगल) में देखा तो रल्ह कवि कहत। है कि विमान के मध्य उस स्त्री को यह दिखाई नहीं दिया ||३.६ ठि तिरिम च जोवन पासु, माझि विमारण न देखक तासु । कलिमलाइ मने बढि बाह, पाइ रगाह फरि मूको बाह् ॥ प्रति गह कार सानियन लागि एज, मह पापिणी मोहमणि कीर । लोग कहन साचौ भयो, जागत चोर नु कुद मुसि गयऊ । अर्थ :-स्त्री ने जो उठकर पास (बगल) में देखा तो विमान में उसे नहीं पाया । अकूला कर विमान पर ऊंची चढ़ करके स्वागी ! म्यामी ! करते हुए उसने पाड़ मारी (वह जोर से रोने लगी) ३१०।। अत्यधिक प्राग्रहपूर्वक मैंने स्वामी को पकड़ा था किन्तु मुझ पापिनी
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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