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________________ बौने के रूप में तो जिणवत रूसि बोलेइ, केतिउ झहि वावसी भर । सोवहि घणो म लाहि खेड, घी एक हूउ पहिरड बेड ।। ___ अर्थ :-"यदि तुम्हें जागते हुए अवमुख (कष्ट) होता हो तो कोई भी लोग मेरी सराहना न करेंगे । वल्लम (पति) के पीछे जो (स्त्री) कुकर्म करती है वह स्त्री नहीं कुत्रिया है उसे मनुष्य जन्म दुबारा नहीं मिलता है ॥३०५।। जिनदत्त नब रुष्ट होकर बोला, "तुम पागल होकर यह सब क्या बक रही हो । तुम धनी (नींद) मोनो तथा मन में जरा मी खेद मत करो । प्रब एक बड़ी मैं पहरा दूगा" ॥३०६।। [ ३०४-३०६ ] बिलखवि घरणी नोव मनु कीयउ, बोती रपरिण सूर अगयो । करइ कपटु वावरण उरिप जामु, हुइ वावरणउ छाडि गऊ तासु ॥ परछनु माइ देखा तिरिय, घण सत सिह यह किसत टसोय । प्रापण गुपत नयर महि फिरइ, जागि मारी सो कारन करइ ॥ अर्थ :--बिलखती हुई उस स्त्री ने घनी नींद की इच्छा को [पौर सो गई । रात्रि पीती और सूर्य उदित दृया। उससे कपट करके (जिनदत्त ने) खोने का शरीर बना लिया तथा बौना होकर अपनी स्त्री को छोड़ गया ||३०७ छिप-छिप कर वह अपनी स्त्री को देखने लगा कि वह (स्त्री) सत सह अथवा सत्त को उसने छोड़ दिया है । स्वयं वह गुप्त रूप में नगर में फिरने लगा । जब वह स्थी (विद्यावरी) जगी तो वारण करने (सेने-चिल्लाने) लगी ॥३०॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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