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________________ सोलह विद्यानों को प्राप्ति सुह तुरंतु भेटियउ दह ठाउ, बेगि चाति परिणावहि माद । गए विज्जाहर पुरी मंझारि, गुरु र तोरण मे वारि ।। अर्थ :-(उन्होंने उत्तर दिया,) "अपने हाथों से इस समुद्र को तैरता (पार करता) हो, बड़ी इम कन्या का स्वामी होगा ।" जब विद्याधर राजा ने हम से ऐसा कहा और तभी से यहां आकर समुद्र-तट पर रह रहे हैं ।।२८। "इसलिये तुम उस स्थान पर चलकर राजा से भेंट करो तथा शोघ्न जलकर (उसकी कन्या से) विवाह करो।" (यह सुनकर) वह विद्याघरों की नगगे में गया जहां गुड़ी एवं लोरण द्वार पर लगे हुये थे ।।२८४१५ उहि – उदधि । सोलह विद्यानों की प्राप्ति [ २८५-२८६ । देखि वीर मानंदउ खया, परिणाविण सिंगारमई कुरि । राय सोग तह काइ करेन, अमनिउ दानु पाजी ॥ सिहज पदार्थ भूपड़ी मिली, बिज्जा सोलह पाई भलो । गगनगामिनी बहुरूपिणी, पाणिउसोखणी इलयभणी ॥ अर्थ :-उस वीर को देर कर वह विद्याधर आनन्दित हुप्रा तथा अपनी कुमारी शृंगारमती का उसके साथ विवाह कर दिया 1 राजा मशोक ने क्या किया कि दायजे में अगणित धन दिया ॥२८॥ उसे (दहेज में) सिंधुज पदार्थों की मुद्रिका मिली एवं सोलह उत्तम विद्याएँ प्राप्त हुई। ने हैं गगनगामिनी, बहुरूपिणी, जलसोस्विनी तथा बलस्तमिनी ॥२-६।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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