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________________ जिसवन्त चरित भोगवती तथा अर्थ :- पुनः अवलीवाला प्रौढ़ा स्त्री है। प्रिय सुन्दरी, मन को प्रसन्न करने वाली सुमइल्ल ( सुमति ) देवी, मोरवती, रामा, कैलाश कुमारी हैं ||२३|| ०३ श्रीवसंतमाला कही जाती है जो अपने कटाक्षों से चित्त को हरण करने वाली है। सभी रानियां दानी और दरिद्रता को दूर भगाने वाली हैं । ये सभी रानियां अशोक राजा की बल्लभाएं हैं" ||२७ I "चे विविध प्रकार के कला विनोद तथा चंद रचना करती हैं, सुरतप्रसंग द्वारा राजा के मन को हरती हैं। गीत-विज्ञान तथा ज्ञान को प्रकट करती हैं तथा दे हाव-भाव एवं विभ्रम धारण करती हैं ॥२०॥ [ २०१-२०२ ] असौ सयल तेच सा चाटु, असोसिरी राणी कह पाट । तहि कुलिशंणि चंगो खरी, छइ सिंगारम विज्जाहरी || को तहि कह अंग सोवण्ण, जीती रूप ताल लोचन । राह श्रसोग पुछिउ मुनिनाहु, धीयह वह सो सामि कहा । " अर्थ :-- ऐसा ( उस राजा का ) सम्पूर्ण रावास का भाव (ठाट ) है । उसकी अशोकश्री पट्टरानी है उसके कुल की मर्यादा स्वरूपा प्रत्यधिक सुन्दरी तथा विद्याधरी श्रृंगार मती नाम की पुत्री है" || २६१|| उसके स्वर्ण के सदृश अंगों का कहां तक वर्णन करें। उसने रूप और ताल में लोचन को जीत लिया है। राजा अशोक ने मुनिवर से पू " हे स्वामी मेरी पुत्री का कौन पति होगा उसे कहिये ॥२६२॥ [ २०३ - २६४ ] हाथ उवह जो पइरतु होइ, कन्या कज वरु होइस सोह । विजाहर राइ साउ कहिय, तज हमु भाइ समुद्र तल रहिय ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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