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________________ जिरायत चरित राजा ने जाकर उससे तुरन्त सेंट की तथा पूछा, "हे वीर तुम कैसे बच गये ? वह वार्ता कहो ।" राजकुमारी ने कहा कि इन्होंने ( मुझे ) रोग से अच्छा कर दिया है अब मेरा शरीर विष रहित हो गया है ।।२३४|| ས सार चौपड़ । नीक रिक्क ग्रच्छा । - 1 [ २३५ - २३६ ] काहि भुयंगु दिवालह सोइ, भाजी राउ पिछोउडो हो । इहु देव कुमरि पेट नीसरउ इनि क्षेत्र समलु लोग संहरिउ ।। बाल छोडि त झाडे पाइ, सिरियामती बोनी पराइ | वह दाइजे रयणी अनिवार, घरह जारण चाह६ वरियार । अर्थ :- उस ( जिनदत्त ) ने सर्प निकाल कर दिखाया । ( जिसे देख कर ) राजा भाग कर उसके पीछे हो गया। जिनदत्त ने कहा हे देव यह राजकुमारी के पेट में से निकला है और इमीने हे दंब ! सब लोगों का संहार किया है ।।२३५|| यह सुन कर राजा ने अपने बालों को खोलकर ( जिरणदत्त के ) पैरों को भाडा तथा श्रीमती का उसके साथ विवाह कर दिया। दहेज में अनगिनत रत्न दिये । ( इसके बाद ) वरिग़क दल घर जाने की इच्छा करने लगा ||२३६ ॥ [ २३.७-२३८ | वरिंगवर समक्ष प्ररोहण चवहि, तर जिस्गदत्त वीनती करहि | समदहि देव मोह चित धर, मेरउ साथ जातु हह परहिं ॥ घराबाह बोलइ सनभाउ श्राधउ देसु करउ नि राय । भो रायणु तुम्ह नाहीं खोड, मुह पुणु पिता तरी श्रवसेरि ।। अर्थ :- सभी व्यापारी प्ररोहा (जहाज) पर चढ़ गये तब जिनदत्त P
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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