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________________ सिंहल द्वीप-वर्णन ७. करता, हाथ होते तो हाथ को पकड़ता, पैर होते तो भाग जाता, प्रतः अब इस शरीर मात्र को क्या कष्ट दू अथवा मारूं ।।२२६-२३०॥ { २३१-२३२ । जंपा सेठिपुत गुण चार, किम करि करउ जोव कज घाउ । हाथ पाउ विणु किमु साधरउ, प्रयसउ घालि चौधुरी घरख ।। धालि घउमुरी धरियड़ नागु, फुनि निसंगु होइ सोवा लागु । पह फाटी हउ भुरपसार, आयो डोमु सु काढए हारु ।। अर्थ :-गुणों को चाहने वाला वह सेठ पुत्र बोला किस प्रकार मैं जीव-वध करू ? उस बिना हाथ पैर वाले जीव को कैसे पकड ? इमलिये इसे ऐसे ही डालकर वौगृटी में रख देता है ।।२१।। चौपुटी (पोटली, चंगेडी) में डालकर उसने सर्प को रख दिया और फिर निःशंक होकर वह सोने लगा 1 पौ फटने पर जब सवेरा हुमा तो होम उसे निकालने आया ॥२३:।। चौपुडी - चतुःपटी – चार छोरों की पोटली । घाउ - घात । निसंगु - निःशंक । माझ प्रवास डोमु जनु गयो, खेसत सार और देखियो । भाजित पाणु राइसिंहू कहा, कालि बसिउ सो खलत प्रहद्द ।। गपि राइ भेटियउ तुरंतु, किमु उयरिउ वीर कहि वात । भणइ कुमर इनि नोकउ केह, निरर्शवत भई हमारो देह ।। अर्थ :-जब वह डोमु महल में गया तो उस वीर को उसने चौपड़ खेलते हुये देखा । प्राण (लेकर) भागते हुये उसने राजा से कहा, "जो कल सोने के लिये आया था वह आज (चौपड़) खेल रहा है।" ॥२३॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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