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________________ जिरायत्त चरित की । पुष्प के जो विटप (वृक्ष) पहिले उकऊ (सुख) गये थे, उनका जिन भगवान के गंधोदक से वह सिंचन करने लगा ।। १६८ ।। ५८ { १६६ -१७ ! थक्किउ सोगु, अन पर परितहि दोन भो । भयो रूबल 1 P जो प्रसोक करि मो छ कसिर रहिउ केवल सिंचित वीर ने नालियर कोपु करि ठिए सिन्हई हार पढोले किए । जे छे सूफि रहे सहकार, सिम्ह अंकबाल दिवाए चाल ।। अर्थ :- जो प्रशोक वृक्ष पहिले शोक कर (से) थक रहा था, उस पर (गंधोदक) पड़ते ही भोग में रखने योग्य हो गया। जो केवडे का पौधा पहिले कृश हो रहा था, और से सिंचित होने के पश्चात् वह सुंदर हो गया | १६६६ || जो नारियल को किए हुए खड़े थे ? उन्हें अब हरे एवं मजबूत कर दिये । जो आम पहिले सूम रहे थे उन्होंने अंक पानी में अब मंजरिया दी || १७० || कसिर • कसिट - कृष्ट | - अंकवाल – कपाली । - [ १०१-१०२ ] नारिंग जंबु बुहारी दाख, पिम्खमूर फोफिली प्रसंख | जातीफल इमायो लवंग, कररणा भरणा कोए नवरंग ॥ कायु कपित्थ वेर पीपली, हरड बहेड खिरी आबिली । सिरीखंड अगर गलवी धूप, खरहि नारि तहि ठाइ सरूप || अर्थ : नारंगी, जामुन, छुहारा, दाख, पिंडखजूर, असं पूगफली (सुपारी), जायफल, इलायची, लोंग करणा तथा मरणा के वृक्षों ने नया दंग कर लिया ।। १७१ ॥ · यहाँ जो करथा, कैथफल, बेर, पीपल, हरड बहेडा, खिरणी, इमली,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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