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________________ ३१ गा० २१२] जहासंभवमेत्थ वेदिज्जमाणाणं छवड्डि-हाणि-अवट्टिदसरूवेणाणुभागोदओ एदस्स खवगस्स दट्टव्वो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसब्भावो। संपहि एदस्सेव गाहासुत्तस्स कुडीकरणट्ठमुवरिमं विहासागंथमाढवेइ * विहासा। ६७१ सुगमं । * जसणाममुच्चागोदं च अणंतगुणाए सेढीए वेदयदि । $ ७२ कुदो ? परिणापमच्चइयाणं सुहपयडीणमणभागोदयस्स खवगसेढीए अणंतगुणवढि मोत्तूण पयरंतरासंभवादो । सादावेदणीयं पि अणंतगुणाए सेढीए वेदेदि त्ति एसो वि अत्थो एत्थेव सुत्तचिदत्तेण वक्खाणेयव्यो, परिणामप्पइयसुहपयडित्तं पडि विसेसाभावादो। संपहि एत्थेव णिगूढमण्णं पि अत्थविसेसं विहासेमाणो पुच्छा सुत्तमुत्तरं भणइ * सेसाओ णामात्रओ कधं वेदयदि । समाधान--क्योंकि उन कर्मों के इस स्थानमें छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित रूपसे अनुभागके उदयकी प्रवृत्ति देखो जातो है, इसलिये यथासम्भव यहाँ वेदी जाने वाली चार प्रकार को ज्ञानावरणीय, तीन प्रकार की दर्शनावरणीय और भवके सम्बन्धसे उपगृहीत नामकर्म प्रतियों का इस क्षपकके छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितस्वरूपसे अनुभागका उदय जानना चाहिए, इस प्रकार यहाँपर इस भाष्यगाथा सूत्रका अर्थके साथ यह सम्बन्ध जानना चाहिये । अब इसी भाष्यगाथा सूत्रको स्पष्ट करने के लिये आगे विभाषा ग्रन्थको आरम्भ करते हैं * अब इस भाष्यगाथा सूत्रकी विभाषा कहते हैं६७१ यह सूत्र सुगम है। * यह क्षपक यश कीर्ति नामकर्मको तथा उच्चगोत्रकमको अनन्तगुणी श्रेणीरूपसे वेदता है। ६७२ क्योंकि परिणाम-प्रत्ययवाली शुभ प्रकृतियोंके अनुभागके उदयका क्षपक श्रेणिमें अनन्तगुण वृद्धिको छोड़कर अन्य प्रकारसे उदय होना सम्भव नहीं है। यह जीव सातावेदनीय प्रकृतिको भी अनन्त-गुणवृद्धिरूपसे वेदता है इस प्रकार इस अर्थका भी यहींपर उक्त भाष्यगाथा सूत्रके द्वारा सूचित हुए रूपसे व्याख्यान करना चाहिये, क्योंकि यह प्रकृति भी परिणामप्रत्यय शुभ प्रकृति है, इस अपेक्षा उक्त प्रकृतियों से इस प्रकृतिमें कोई भेद नहीं है । अब इसी भाष्य गाथा सूत्र में लोन अन्य अर्थविशेषकी भी विशेष व्याख्या करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं * नामकर्मकी शेष प्रकृतियोंको किस प्रकार वेदता है ?
SR No.090228
Book TitleKasaypahudam Part 16
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size25 MB
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